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बंसोड कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट प्रायवेट बस स्टेण्ड छिन्दवाड़ा
created Nov 22nd 2021, 04:19 by Ashu Soni
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एक बार एक गांव में चार ब्राह्मण रहते थे। तीन तो पढ़ने लिखने में व्यस्त रहते थे। और चौथा जिसका नाम बिरजू था उसे पढ़ने लिखने का कोई शौक नहीं था। एक दिन वे तीनों इकट्ठे हुए उनमें से एक बोला क्यों ना हम शहर जाकर अपनी किस्मत चमकाए। थोड़ा बहुत जो किताबों से ज्ञान लिया है तो उसका लाभ हमें यहां नहीं मिल सकता। दूसरे ने बोला ठीक है पर हम अपने मित्र बिरजू को साथ नहीं ले जाएंगे। वह तो गवार है हम पर बोझ ही होगा। तीसरा बोला हां ठीक है उसे कुछ आता जाता तो नहीं पर वह हमारा बचपन का मित्र है इसलिए उसे छोड़ भी तो नहीं सकते जो भी हो उसे ले चलते हैं वहां पर जो हम कमाएंगे उनमें से कुछ उसे भी दे दिया करेंगे। इस तरह वे चारों शहर की ओर चल दिए। पर रास्ता एक जंगल से होकर गुजरता था। जब वह जंगल के अंदर कुछ दूर तक चले गए तो अचानक में एक हड्डियों का ढांचा दिखाई दिया। एक ने कहा यह हड्डियां बब्बर शेर की लगती हैं दूसरा बोला क्यों ना हम अपनी ज्ञान की परीक्षा यही ले लेते हैं। मैं हड्डियों को इकट्ठा करके कंकाल का रूप दे सकता हूं। अगला अगर तुम कंकाल खड़ा कर सकते हो तो मैं उन में त्वचा और मांस पेशियां भर सकता हूं। तीसरा बोला अगर तुम लोगों ने अपना काम सही से कर दिया तो उसमें दाना डालने का जिम्मा मेरा। चौथा सोचने लगा कहीं यह सब पागल तो नहीं हो गए अगर सचमुच यह हड्डियां शेर की हुई तो अनर्थ हो जाएगा। पहले ने हड्डियों को जोड़कर कंकाल बना दिया। दूसरे ने अपने विद्या से उसमें मांसपेशियां व त्वचा भर दी। तीसरे ने बिरजू से कहा बिरजू क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें भी पढ़ना चाहिए था। बिरजू ने कहा यह सब तो ठीक है पर गलती से इसमें प्राण मत डाल देना। वरना हम सब मारे जाएंगे। तीसरा बोला तू इतना एहसान फरामोश होगा जानते हो तुम्हें अपने साथ लेकर चलने के लिए मैंने इन्हें मनाया था। बिरजू बोला लेकिन तीसरा बोलो लेकिन लेकिन कुछ नहीं जब मेरी बारी आई ज्ञान दिखाने की तो तु मुझे रोक रहा है। बिरजू बोला तो ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी पर मुझे पहले पेड़ पर चढ़ लेने दो। तीसरा बोला जा डरपोक जा बिरजू लपक कर पेड़ पर चढ़ गया। तीनों ब्राह्मण के ज्ञान से जैसे ही शेर में जान आई शेर उन तीनों ब्राह्मणों को मारकर खा गया।
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