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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Oct 19th 2021, 06:40 by lucky shrivatri


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सूचना का अधिकार मनुष्‍य को प्राप्‍त सभी स्‍वतंत्रताओं की मूल धुरी है। यह सारगर्भित कथन संयुक्‍त राष्‍ट्र (यूएन) द्वारा अंगीकार किए गए मानवाधिकारों के लिए सार्वभौम घोषणा पत्र का है। भारत में एक ओर सूचना के अधिकार की मांग के लिए करीब डेढ़ दशक तक देशव्‍यापी जनांदोलन चला। दूसरी तरफ, विश्‍व बैंक, अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक आदि वित्तीय सहायता देने की शर्त के रूप में सुशासन, पारदर्शिता जवाबदेही के लिए कानूनी प्रावधान करने पर जोर देने लगे। ऐसा करके अंतरराष्‍ट्रीय वित्तीय संस्‍थाओं ने भी आरटीआइ कानून को लेकर सरकार पर दबाव के चलते 12 अक्‍टूबर, 2015 को भारत में सूचना का अधिकार कानून लागू कर दिया गया। आरटीआइ एक्‍ट, 2015 को संसद ने सर्वसम्‍मति से पारित तो कर दिया, पर अनिच्‍छा और मजबूरी में। नतीजन, इस कानून के अधिकतर बाध्‍यकारी जनहितकारी प्रावधान अब भी अपेक्षित अमल के मोहताज बने हुए हैं। यह स्थिति भी तब है, जबकि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्‍छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के साथ सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में कई बार मान्‍य कर चुका है।  
आम आदमी को बड़ी ताकत देने वाले इस अधिकार के प्रति केंद्र राज्‍य सरकारों की बेरूखी स्‍पष्‍ट है। नतीजा यह है कि सरकारी तंत्र का बड़ा हिस्‍सा सुशासन की कुंजी माने जाने वाले आरटीआइ एक्‍ट के प्रति नकारात्‍मक रवैया अपनाए हुए है। उसे सकारात्‍मक करने की जवाबदेही सरकारों पर ही निर्भर है। आरटीआइ एक्‍ट के प्रावधानों को लागू करने के लिए केंद्र राज्‍य सरकारों द्वारा संबंधित अधिकारियों के लिए समय-समय पर परिपत्र जारी किए जाते हैं। मुश्किल यह है कि सरकारी निदेर्शों की अनुपालना हो रही है या नहीं, इसकी निगरानी के लिए कोई व्‍यवस्‍था नहीं की गई। इससे ढाक के तीन पात वाली स्थिति बनी रही। विभिन्‍न राज्‍यों के सूचना आयोगों में जितनी अधिक संख्‍या में अपीलें शिकायतें लम्बित हैं, उनके मुकाबले कई प्रदेशों के आयोगों में आधे या उससे भी कम संख्‍या में सूचना आयुक्‍त नियुक्‍त हैं। इससे जनता को न्‍याय मिलने में अनावश्‍यक देरी हो रही है। सूचना आयुक्‍तों को प्रशिक्षण देने की कोई ठोस व्‍यवस्‍था नहीं है। यही वजह है कि सेवाकाल में शुरूआत के कुछ माह तो आरटीआइ एक्‍ट को समझने और उसके अनुसार निर्णय पारित करना सीखने में ही निकल जाते हैं। सूचना आयुक्‍तों के अन्‍यायपूर्ण फैसलों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट दायर करने के अतिरिक्‍त अन्‍य कोई वैधानिक समाधान लोगों को उपलब्‍ध नहीं है। हाईकोर्ट जाना महंगा होने से आम नागरिक नाइंसाफी के आगे हार मानकर बैठ जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट आदि के निर्णयों पर उसी कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है। आरटीआइ एक्‍ट में संशोधन कर ऐसी ही व्‍यवस्‍था सूचना आयोगों में भी लागू की जानी चाहिए, जिससे आम आदमी आसानी से राहत पा सके।  
लोकहित लोक क्रियाकलाप से जुड़े कार्यों के बारे में जानने के अधिकार का आम जनता में व्‍यापक प्रचार-प्रसार करने की आवश्‍यकता है। साथ ही, आरटीआइ एक्‍ट के क्रियान्‍वयन से जुड़े लोक सेवकों को भी समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाए।  

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