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created Sep 16th 2021, 10:44 by puneet nagotiya
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सत्य बोलने से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है। दया से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। आत्मा के आनन्द से बढ़कर कोई आनन्द नहीं है। आध्यात्मिक धन से बड़ा कोई धन नहीं है। असत्य का अनावरण एक न एक दिन होता ही है। स्थिरता केवल सच्चाई में है। उसको समझने में देर भले ही लग सकती है, अंतत: विजय सत्य की होती है। सत्य साधना कठिन इसलिए प्रतीत होती है कि उसमें असत्य की चमक-दमक नहीं है। सत्य संयम है, व्रत है। सत्य सारे साधनों की आधारशिला है। काई भी साधना कितनी ही ऊंची क्यों न हो, बिना सत्य साधना के सफल नहीं हो सकती। आध्यात्मिक प्रगति के लिए सत्य का अवलंबन लेने पर अन्य साधनों की आवश्यकता नहीं रहती। ईमानदारी, सहिष्णुता, उदारता, भयहीनता आदि गुण सत्य के सहचर है।
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