Text Practice Mode
HIGH COURT HINDI TYPING PRACTICE SHUBHAM BAXER CHHINDWARA (M.P.) 7987415987
created Sep 15th 2021, 14:53 by shubham baxer
2
314 words
4 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
भारत का संविधान: उद्देशिका-
हम भारत के लोग , भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व–संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
न्याय वितरण प्रणाली
भारतीय न्यायिक व्यवस्था के उद्भव और विकास तथा आधुनिक भारत में दीवनी और फौजदारी न्यायालयों की कार्य-पद्धति पर चर्चा के बाद दीवनी और फौजदारी मामलों, उनके प्रकार तथा न्यायालय में उनके विभिन्न चरणों से गुजरने की स्थिति के बारे में जानना उचित रहेगा। विवादों को हल करने के लिए दीवानी और फौजदारी न्याायालयों के अतिरिक्त अन्य कई तरीक हैं। न्याायालयों के अतिरक्ति न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल), जिन्हे न्यांयिक निकाय के रूप में परिभाषित किया जाता है, विशेष प्रकार के अथवा तकनीकी प्रकार के विवादों को हल करके न्यायालयों पर बोझ कम करने में सहायता करते हैं। अत: न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनलों) के माध्यम से विवाद समाधान करना भी आधुनिक भारत में विवाद हल करने के तंत्र का एक भाग है। मूलत: न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनलों) को कानून की विशेष शाखा से संबंधी मामलों के लिए ही गठित किया जाता है। नियमित न्यायालयों और न्यायाधिकरणों ट्रिब्यूनलों और उनकी कार्य-पद्धति के बीच तुलना करते हुए यह कहा जा सकता है कि दीवानी और फौजदारी न्यायालय कानून की कठोर कार्य-प्रणाली का पालन करते हैं, वहीं ट्रिब्यूनल कानून के तकनीकी नियमों का सहजता से पालन करते हैं। संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ चेयरमैन तथा अन्य सदस् मामले पर निर्णय लेते हैं। जैसे ट्रिब्यूूनल भारत अर्थात केन्द्र स्तक पर कार्य कर रहे हैं राज्य स्तर पर भी कुछ न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) गठित किये गये है तथा वे कार्य कर रहे हैं।
हम भारत के लोग , भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व–संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
न्याय वितरण प्रणाली
भारतीय न्यायिक व्यवस्था के उद्भव और विकास तथा आधुनिक भारत में दीवनी और फौजदारी न्यायालयों की कार्य-पद्धति पर चर्चा के बाद दीवनी और फौजदारी मामलों, उनके प्रकार तथा न्यायालय में उनके विभिन्न चरणों से गुजरने की स्थिति के बारे में जानना उचित रहेगा। विवादों को हल करने के लिए दीवानी और फौजदारी न्याायालयों के अतिरिक्त अन्य कई तरीक हैं। न्याायालयों के अतिरक्ति न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल), जिन्हे न्यांयिक निकाय के रूप में परिभाषित किया जाता है, विशेष प्रकार के अथवा तकनीकी प्रकार के विवादों को हल करके न्यायालयों पर बोझ कम करने में सहायता करते हैं। अत: न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनलों) के माध्यम से विवाद समाधान करना भी आधुनिक भारत में विवाद हल करने के तंत्र का एक भाग है। मूलत: न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनलों) को कानून की विशेष शाखा से संबंधी मामलों के लिए ही गठित किया जाता है। नियमित न्यायालयों और न्यायाधिकरणों ट्रिब्यूनलों और उनकी कार्य-पद्धति के बीच तुलना करते हुए यह कहा जा सकता है कि दीवानी और फौजदारी न्यायालय कानून की कठोर कार्य-प्रणाली का पालन करते हैं, वहीं ट्रिब्यूनल कानून के तकनीकी नियमों का सहजता से पालन करते हैं। संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ चेयरमैन तथा अन्य सदस् मामले पर निर्णय लेते हैं। जैसे ट्रिब्यूूनल भारत अर्थात केन्द्र स्तक पर कार्य कर रहे हैं राज्य स्तर पर भी कुछ न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) गठित किये गये है तथा वे कार्य कर रहे हैं।
saving score / loading statistics ...