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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Sep 14th 2021, 03:51 by lucky shrivatri
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सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने दो प्रमुख ट्रिब्यूनल्स (न्यायाधिकरण) में 31 नियुक्तियों को मंजूरी दे दी है। शीर्ष अदालत की और से बार-बार ट्रिब्यूनल्स के खाली पदों की तरफ ध्यान दिलाने की नौबत पैदा होना वाकई चिंताजनक है। कार्यपालिका के कामकाज को लेकर न्यायपालिका की तीखी टिप्पणियां पहले भी कई बार सुनाई दी है। इस बार मामला सीधे तौर पर अदालतों से जुड़ा था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को कड़े शब्दों में कहना पड़ा, लगता है कि इस अदालत के फैसलों का कोई सम्मान नहीं है। आप हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे है। आप नियुक्तियां नहीं कर न्यायाधिकरणों को कमजोर कर रहे है। न्यायाधिकरणों के कामकाज से जुड़े कानून को संसद में सार्थक बहस के बगैर पारित किए जाने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी।
कार्यपालिका की जिम्मेदारी है कि महत्वपूर्ण कामकाज को वह प्राथमिकता के आधार पर निपटाए। विडम्बना है कि ऐसा नहीं होता है। पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगता है, तभी वह सक्रिय होती है। अदालतों में बढ़ते मामलों के बोझ को कम करने के लिए ट्रिब्यूनल्स की स्थापना की गई थी। इनमें नियुक्त्यिों में विलंब के कारण कंपनी कानूनों और आयकर से जुड़े मामले भी अदालत पहुंच रहे थे। कानूनों के तमाम प्रावधानों का पालन करते हुए नाम भेजे जाने के बावजूद नियुक्तियां न करने का कोई तर्कसंगत स्पटीष्करण भी पेश नहीं किया जा रहा था। अर्ध-न्यायिक संस्था के तौर पर काम करने वाले सभी ट्रिब्यूनल पीठासीन अधिकारियों व स्टाफ की कमी से जुझ रहे है। फिलहाल राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण व आयकर अपीलेट न्यायाधिकरण आइटीएटी में ही नियुक्तियां मंजूरी की गई है। ऋण वसूली न्यायाधिकरण समेत बाकी न्यायाधिकरणों के खाली पद भरने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने की उम्मीद की जानी चाहिए।
न्यायाधिकरणों की नियुक्तियों में विलंब का एक कारण कार्यपालिका पर कामकाज का बोझ भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में एक मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग एनटीसी का विचार दिया था। न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता से समझौता किए बगैर उनके मामलों की देख-रेख के लिए यह बेहतर विकल्प हो सकता है। न्यायाधिकरण में नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया के संचालन और विकास की जिम्मेदारी इसे सौंपी जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि देरी नहीं होनी चाहिए। न्याय में देरी और बैकलॉग जैसी समस्याएं न्यायिक प्रणाली को पंगु बना देती है।
कार्यपालिका की जिम्मेदारी है कि महत्वपूर्ण कामकाज को वह प्राथमिकता के आधार पर निपटाए। विडम्बना है कि ऐसा नहीं होता है। पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगता है, तभी वह सक्रिय होती है। अदालतों में बढ़ते मामलों के बोझ को कम करने के लिए ट्रिब्यूनल्स की स्थापना की गई थी। इनमें नियुक्त्यिों में विलंब के कारण कंपनी कानूनों और आयकर से जुड़े मामले भी अदालत पहुंच रहे थे। कानूनों के तमाम प्रावधानों का पालन करते हुए नाम भेजे जाने के बावजूद नियुक्तियां न करने का कोई तर्कसंगत स्पटीष्करण भी पेश नहीं किया जा रहा था। अर्ध-न्यायिक संस्था के तौर पर काम करने वाले सभी ट्रिब्यूनल पीठासीन अधिकारियों व स्टाफ की कमी से जुझ रहे है। फिलहाल राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण व आयकर अपीलेट न्यायाधिकरण आइटीएटी में ही नियुक्तियां मंजूरी की गई है। ऋण वसूली न्यायाधिकरण समेत बाकी न्यायाधिकरणों के खाली पद भरने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने की उम्मीद की जानी चाहिए।
न्यायाधिकरणों की नियुक्तियों में विलंब का एक कारण कार्यपालिका पर कामकाज का बोझ भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में एक मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग एनटीसी का विचार दिया था। न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता से समझौता किए बगैर उनके मामलों की देख-रेख के लिए यह बेहतर विकल्प हो सकता है। न्यायाधिकरण में नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया के संचालन और विकास की जिम्मेदारी इसे सौंपी जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि देरी नहीं होनी चाहिए। न्याय में देरी और बैकलॉग जैसी समस्याएं न्यायिक प्रणाली को पंगु बना देती है।
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