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सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Jul 22nd 2021, 09:21 by Jyotishrivatri
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				मन बाहर की और दौड़ना चाहता है, मंदिर में नहीं रहना चाहता है। मन पांचों इन्द्रियों को नचाता रहता है। मन इन पांचों नौकरों को काम बताता रहता है। ये इन्द्रियां अपने-अपने विषयों की और दौड़ती है। मन प्रवाह पांच भागों में बंट जाता है। मन की भूख प्यास घर में नहीं मिटती है। जो मनोरथ पर बैठ जाते है, उनकी गति रॉकेट से भी ज्यादा तेज हो जाती है। कल्पना भी बहुत दूर-दूर तक हो जाती है। ऐसी हालत में ज्ञान अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है। वह ज्ञान मंदिर के द्वारा ही लक्ष्य तक पहुंच पाता है। यह निमित्त-नैमित्तिक का सम्बन्ध है। एक इन्द्री जक काम कर रही हो, तो दूसरी इन्द्रियां काम करना गौण कर देती है। पंचेन्द्रिय विषय जहां घर में उपलब्ध है, वहां भगवान की भक्ति में ध्यान नहीं लग सकता। लिखते समय भी ध्यान की बहुत आवश्यकता है। इसलिए प्राथमिक दशा में पेंचन्द्रिय विषयों से दूर रहकर मंदिर में दर्शन करना जरूरी है। मंदिरों में पांचों इन्द्रियां अपने कार्य बदं कर देती है, रेस्ट ले लेती है। इसीलिए वहां मन चिंतन कर लेता है। वहां विषयों को पुष्ट करने के साधन नहीं है। अत: उन पंचन्द्रियों की शक्ति भगवान की और केंद्रित हो जाती है। मंदिर समाज को जोड़ने का भी काम करता ह। प्रारम्भिक अवस्था में मंदिर जाना आवश्यक है। वहां वीतरागता की खोज करनी चाहिए तथा आरम्भ-परिग्रह, घर गृहस्थी की बातें नहीं करनी चाहिए। उसे मिलने का स्थान नहीं समझना चाहिए। केवल प्रभु पर ध्यान देना चाहिए।  
			
			
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