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सफलता का मंत्र

created Aug 28th 2015, 17:13 by AMITSHUKLA923240


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सफलता का मंत्र एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का मंत्र क्या है सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो वो मिले तब सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा और जब आगे बढ़ते बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा तब सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते हाँफते तेजी से सांस लेना सुकरात ने पूछा, जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे लड़के ने उत्तर दिया, सांस लेनासुकरात ने कहा, यही सफलता का मंत्र है जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी इसके आलावा और कोई मंत्र नहीं है गुरु दक्षिणा एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा गुरु जी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं इनमें कौन सही है गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया पुत्र, जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था गुरु जी को इसका आभास हो गया वे कहने लगे लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे उन्होंने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों नें अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए गुरु जी पहले तो मंद मंद मुस्कराये और तब बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा अब वे तीनों शिष्य चलते चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं, उनके आश्चर्य का ठिकाना रहा वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें तब से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा पुत्रो, ले आये गुरुदक्षिणा तीनों ने सर झुका लिया गुरू जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा गुरुदेव, हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं गुरु जी तब पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले निराश क्यों होते हो प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी खुशी अपने अपने घर की ओर चले गये वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था, अचानक बड़े उत्साह से बोला गुरु जी, अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो तब हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक सभी का अपना अपना महत्त्व होता है गुरु जी भी तुरंत ही बोले हाँ, पुत्र, मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना, सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके दूसरे, यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम निर्विक्षेप, स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था अंततः, मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि हम मन, वचन और कर्म इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है वस्तुतः, हमारे जीवन का सबसे बड़ा उत्सव पुरुषार्थ ही होता है ऐसा विद्वानों का मत है आप हाथी नहीं इंसान हैं एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं। ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं तब महावत ने कहा, इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें बार बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं  इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है, और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए आप हाथी नहीं इंसान हैं आज ही क्यों नहीं एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर सम्मान किया करता था गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन संग्राम में पराजित हो जाये आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है, तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी, समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा तब दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल जागा, उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी, और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था अब वह जल्दी जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर चूर हो गया पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं, पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं इसलिए मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान बनना चाहते हैं तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम, और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये आज ही क्यों नहीं बाज की उड़ान एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच गया कुछ दिनों बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ चूँ करता बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़

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