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लेकिन कोई नया दृष्टिकोण वह पेश नहीं कर पाए हैं। उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनना है यह सबको पता है, लेकिन कब किसी को पता नहीं। इसके दो ही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। एक कि पार्टी को उनकी नेतृत्व क्षमता पर भरोसा नहीं है। दूसरा यह कि राहुल गांधी को खुद अपनी क्षमता पर संदेह है। दोनों में से कौन सी बात सही है यह तो वही बता सकते हैं। लेकिन देश की सबसे पुरानी और कभी सबसे बड़ी पार्टी की दशा दयनीय होती जा रही है। कोढ़ में खाज यह कि पार्टी में स्पष्ट रूप से दो गुट बन गए हैं। एक अपने को राहुल समर्थक और दूसरे अपने को सोनिया समर्थक बताता है। दोनों ही कांग्रेस को बचाने के नाम पर यह कर रहे हैं। जाहिर है कि यह गुटबाजी पार्टी को बचाने के लिए नहीं अपने पैर के नीचे की जमीन बचाने के लिए है।
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) संविधान संशोधन विधेयक देश की अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा दोनों बदल सकता है। यह विधेयक कांग्रेस का अपना विधेयक है। उसे बदले की राजनीति की भेंट चढ़ाकर कांग्रेस को राजनीतिक रूप से कुछ हासिल नहीं होने वाला। बिहार चुनाव सामने है। दोनों गठबंधन विकास को प्रमुख मुद्दा बनाने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में आर्थिक सुधार के इतने बड़े विधेयक को कानून बनने से रोककर वह मतदाताओं के बीच अपनी विश्वसनीयता कायम नहीं कर सकती, लेकिन क्या कांग्रेस में किसी को इसकी चिंता है?
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) संविधान संशोधन विधेयक देश की अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा दोनों बदल सकता है। यह विधेयक कांग्रेस का अपना विधेयक है। उसे बदले की राजनीति की भेंट चढ़ाकर कांग्रेस को राजनीतिक रूप से कुछ हासिल नहीं होने वाला। बिहार चुनाव सामने है। दोनों गठबंधन विकास को प्रमुख मुद्दा बनाने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में आर्थिक सुधार के इतने बड़े विधेयक को कानून बनने से रोककर वह मतदाताओं के बीच अपनी विश्वसनीयता कायम नहीं कर सकती, लेकिन क्या कांग्रेस में किसी को इसकी चिंता है?
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