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created Mar 22nd 2021, 09:28 by Nitin tkg


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चिलचिलाती ज्येष्ठओ की दुपहरी हो या सावन की घन घोर बारिश हो सरला अपने बेटे आलेख की स्कूल बस के इन्तिजार में समय से पहले बस स्टॉप पर आकर खड़ी हो जाती थी। पल्लु  से पसीना पोछती या फिर बारिश की बूंदे हटाते हुए वो बार-बार सड़क में दूर तक निगाह दौड़ती। बस स्टॉप से आलेख को लेकर घर पहुंचने तक उसे लगभग सात-आठ मिनट का समय लगता था। इसलिए साथ में स्टील के एक छोटे डब्बे में आलेख के पसन्दे की मिठाई या नमकीन  ले आती थी। बस से उतरते ही आलेख जब मां के हाथों से वो डब्बा झपट लेता सरला मुस्कुराते हुए उसे निहारती रहती।
गांव की पाठशाला में पांचवी तक पढ़ी सरला किताबों में लिखी बाते तो आलेख को नहीं समझा पाती थी पर  जीवन में पढ़ाई लिखाई के महत्व को वो काफी अच्छें से समझाती थी।  
सत्ताईस साल बीत गए थे। नन्हा आलेख बड़ा वैज्ञानिक बन चुका था पिछले पांच सालों से वो यूरोप में था। साथ काम करने वाली मीनाक्षी को आलेख पसन्दह करने लगा था। मीनाक्षी एक बड़े सरकारी अधिकारी की बेटी थी फोन पर बताया था आलेख ने मां को मीनाक्षी के बारे में अब वो देश लौट रहा था। मीनाक्षी भी साथ रही थी। सरला हवाई अड्डे  के बाहर बेटे ओर होने वाली बहू का इंतजार रही थी उसे स्कूल के वो दिन याद गये जब वो बस स्टॉप पर बस के आने का इंतजार करती थी। मीनाक्षी के घर वाले भी एयरपोर्ट के एग्जिट गेट में गए थे। उन्होने हाथों से खूबसूरत फूलों का बुके लिया हुआ था। आलेश और मीनाक्षी के स्वागत के लिए पर बेचारी सरला को ये बुक ऊके का गाणित कहां से समझ आता था। वो तो आज भी आंचल मे छुपा कर ले आयी थी स्टील का एक डब्बा और उसमें आलेख की मन पसन्द सोन पापड़ी।  
जहाज उतर चुका था. एग्जिट गेट में मेहमानों का इन्तजार कर रहे। लोगों की हलचल बढ़  गयी थी। सारे लोग गेट के मुंह पे जमा हो गए थे पर सरला जाने क्यों  धीरे-धीरे पीछे सरक रही थी। स्वागत के अंगेजों तौर तरीके ये बडे-बडे लोगों का अंदाज कहां था। उसके पास दुनियादारी की दौड़ में बेटे को आगे कर चुकी सरला शायद खुद कही पीछे रह गयी थी। अचानक उसके आंचल मे छिपा डब्बा किसी ने झपटा तो वो एकदम से घबरा गई थी पर अगले ही पल जैसे उसकी आंखों के समझ कितना सुखद पल खड़ा हुआ था। सामने आलेख खड़ा था बचपन वाली उसी मुस्कासन के साथ आलेख ने मां के पांव छुए और जल्दी-जल्दी खोलने लगा सटील का वो डब्बा चारो सोन पापड़ी वो एक साथ हाथ के पंजों में समेटने लगा। मीनाक्षी उसने अपना हिस्साा छीनने लगी। इससे मांजी मेरे लिऐ लेकर आई है। बोलते हुए आलेख और मीनाक्षा छोटे बच्चों की तरह एक-दूसरे से झगड़ते मों को लिपट चुके थे। सरला निश्चि‍त हो चुकी थी दुनिया का नामचीन वैज्ञानिक बन चुका आलेख अन्दतर से आज भी बालकपन का वही रूप लिए हुए है।  
 

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