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created Feb 23rd, 09:10 by AMIT SONI
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सोमवार 11 सितम्बर 1983 शिकागों चला संस्थान को कोलम्बस हाॅल और समय ठीक 10 बजे का। आश्चर्य इस बात का कि एक धर्म मंच पर विश्व के दस धर्मो के प्रतिनिधि एकत्रित थे। विश्व के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना थी। मंच के मध्य में रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय के आचार्य कार्डिनल गिवन्स बैठे थे। उनकी बायें और रोमन कैथोलिक प्रोटेस्टन्ट, प्रेसबिटरियन आदि इसाई धर्मो के विभिन्न प्रकार की रंगबिरंगी पोशाकों में विराजमान थे। श्रीमती एनी बसेन्ट और चक्रवर्ती थियोसोफिस्ट सोसाइटी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। पर इन सबके मध्य सर्वाधिक आकर्षित करने वाले थे स्वामी विवेकानन्द। वे अमेरिका का भगिनियों एवं बन्धुओं ही बोल पाये थे कि सारा हाॅल करतल ध्वनियों से गूंज उठा। सारे श्रोता उनके सम्मान में खड़े हो गये। वैसें अब तक कितने ही विद्धानों के भाषण सुने जा चुके थे। पर जो आत्मीयता व मधुरता स्वामी जी के प्रथम शब्दों में थी वह अन्य किसी के भी भाषणों में सुनने को नही मिली थी। स्वामी जी स्वयं आश्चर्य में पड़ गये थे। कि अभी तक मैं कुछ कह भी नही पाया हूं। फिर भी जन-समूह में यह हर्ष ध्वनि क्यों? स्वामी जी का यह प्रथम भाषण बहुत ही संक्षिप्त में था। आमतौर से बोलने से पूर्ण लोगों की यह धारणा थी कि पराधीन देश का यह पिछड़ा व्यक्ति अपनी बात शिक्षित समाज के सम्मुख क्या रख सकेगा। पर स्वामीजी के छोटे से भाषण में भी लोगों को अपनी धारणा बदलने के लिए विवश होना पड़ा।
