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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा, सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो0 नं.9098909565

created Feb 23rd 2021, 05:50 by lovelesh shrivatri


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पूर्वी लद्दाख में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर घटनाक्रम तेंजी से शांति की दिशा में घूम रहा है। पैंगोंग झील इलाके से चीन और भारत की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। शनिवार को दोनों देशों के कोर कमांडरों की दसवें दौर की बातचीत में तनातनी वाले डेपसांग, हॉट स्प्रिंग, गोगरा और डेमचक इलाकों से भी सेनाएं पीछे हटाने पर मंत्रणा की गई। संकेत सकारात्‍मक हैं। बातचीत से पहले चीन के इस कबूलनामे को नया पैंतरा माना जा रहा था कि गलवान की हिंसक झड़प में उसके पांच फौजी मारे गए थे। शुक्र है, बातचीत में कबूलनामे की कड़वाहट महसूस नहीं हुई। अगर कुछ और इलाकों से सेनाएं हटाने का रोडमैप तैयार होता है, तो यह एलएसी पर शांति बहाली का एक और सार्थक कदम होगा। करीब नौ महीने से तनी चीन की गर्दन में लचीलापन पैदा करना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। एलएसी पर चीन के हमलावर रुख का कड़ा जवाब भारत ने उसके खिलाफ आर्थिक पाबंदियां बढ़ाकर दिया। दुनिया में सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने के सपने देखने वाले चीन के लिए भारत जैसे विशाल देश की पाबंदियों की परवाह नहीं करना मुश्किल है। अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी वह अलग-अलग पड़ता जा रहा है। वह भारत के पड़ोसी देशों, पाकिस्‍तान और नेपाल को भले अपने पक्ष में करने में कामयाब रहा और किसी देश का समर्थन हासिल नहीं कर सका। अमरीका के साथ उसका पहले से छत्तीस का आंकड़ा है। ब्रिटेन, ऑस्‍ट्रेलिया, जापान, कनाडा, वियतनाम और फिलीपींस के साथ भी उसके रिश्‍ते अच्‍छे नहीं हैं। उसकी चिंताओं और चालों में रूस की भी कोई दिलचस्‍पी नहीं है। चीन के विदेश मंत्री ने पिछले साल अगस्‍त-सितम्‍बर में इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, फ्रांस और जर्मनी का दौरा किया था। दौरे का असली मकसद यूरोपीय संघ का समर्थन हासिल करना था, लेकिन तुषारापात हो गया। दक्षिण चीन सागर में हमलावर रुख को लेकर इन देशों ने चीन को जमकर फटकारा। इसके बाद चीन की अकड़ ढीली पड़ने लगी थी। पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों से सेनाएं पीछे हटने से बेशक भारत और चीन के बीच तनाव घटेगा, लेकिन सीमा विवाद के स्‍थायी हल की मंजिल फिलहाल दूर है। चीन ने पिछले नौ महीनों के दौरान एलएसी पर जो  हरकतें की, उनसे आपसी भरोसे की दरार और चौड़ी हुई है। चीन जिस तरह बार-बार पलटी मारता है, उससे भरोसे की पुख्‍ता जमीन तैयार नहीं हो पाती। एक-दूसरे के दावों और एलएसी का सम्‍मान करते हुए दोनों देश बातचीत का सिलसिला जारी रखें, तो भविष्‍य में भरोसे की कोई सूरत पैदा हो सकती हे। पूर्वी लद्दाख से सेनाएं हटने की प्रक्रिया के दोरान भारत को चीन के कदमों पर सतत निगरानी रखनी होगी। चीन अगर भरोसा तोड़ने में माहिर है, तो उसे अच्‍छी तरह समझा देना होगा कि यह 1962 का भारत नहीं है। सीमाओं पर अब धोखे की एक चिंगारी भी बर्राश्‍त नहीं की जाएगी।

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