eng
competition

Text Practice Mode

बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Jan 27th 2021, 01:44 by shilpa ghorke


0


Rating

424 words
11 completed
00:00
किसी भी मां के लिए डॉक्‍टर के मुंह से वह सब सुनना तकलीफदेह होता, लेकिन डॉक्‍टर को भी मेडिकल रिपोर्टों और इलाज के हवाले से अपना फर्ज निभाना था। उन्‍होंने मीना मुथा से हमदर्दी जताते हुए कहा- यह आपके लिए पीड़ादायक जरूर है, पर बेहतर होगा कि आप अपनी बेटी को किसी रीहैबिलटेशन सेंटर में दाखिल करा दें। किशोरावस्‍था में मानसिक रोग की शिकार बनी बेटी को खुद से दूर करने का ख्‍याल ही भयानक था। मीना खामोश उठ आई थीं। एक के बाद दूसरे मनोरोग विशेषज्ञ के यहां वह बेटी के लिए उम्‍मीदें तलाशती भटकती रहीं, मगर हर जगह से यही जवाब मिला, इसमें काफी धीमी प्रगति होती है, इसलिए मरीज का पूरा-पूरा ख्याल रखना पड़ेगा थक-हारकर मीना मुंबई के एकाधिक रीहैबिलटेशन सेंटर घूम भी आईं, लेकिन वहां के हालात देख उन्‍हें यह गवारा हुआ कि बेटी को उनमें रखें। समझ में नहीं रहा था कि क्‍या करें। वैसे भी, समाज में मनोरोगों मनोरोगियों को लेकर ऐसी ग्रंथियां पलती हैं कि कोई किसी मनोचिकित्‍सक के पास गया नहीं कि उसे पागल समझा जाने लगता है, और फिर उसकी मानसिक प्रताड़ना का क्रम शुरू हो जाता है। यही कारण है कि आज भारत में आठ करोड़ से अधिक लोग विभिन्‍न तरह की मानसिक समस्‍याओं से जूझ रहे हैं, मगर उनमें से 90 फीसदी से भी ज्यादा इसी वर्जना की वजह से अपना इलाज नहीं कराते। मीना काफी बेचैन थीं। बेटी की हालत ने मानसिक समस्‍याओं से जूझ रहे तमाम लोगों को लेकर उन्‍हें काफी संजीदा बना दिया था। उन्‍होंने बेटी के साथ-साथ औरों की मदद का फैसला किया। पति और अन्‍य करीबियों की सलाह मदद से 2004 में उन्‍होंने मुंबई में ही एक गैर-लाभकारी संस्‍था मानव फाउंडेशन की नींव रखी। इसमें विभिन्‍न तरह के मानसिक रोगियों को उपचार की सहूलियतें मुहैया कराई जाने लगीं। मकसद सिर्फ एक था कि ऐसे लोग ठीक होकर समाज की मुख्‍यधारा में वापसी कर सकें।
ऐसे लोगों के लिए मीना की यह पहल कितनी बड़ी नेमत साबित हुई है, फिल्‍मकार सुमीरा राय एक बड़ा उदाहरण हैं। सुमीरा की बहन शिवालिका स्किजोफ्रीनिया की शिकार हैं। वह जयपुर में मां के साथ रहती थीं। शिवालिका की देखभाल मां के ही जिम्‍मे था। सुमीरा को बहन की मानसिक स्थिति के बारे में गहराई से कुछ पता ही नहीं था। वह तो बस एक-दो दिनों के लिए मुंबई से जयपुर उनसे मिलने आती थीं। पर जब 2016 में मां की मौत हुई, तब सुमीरा के पास कोई विकल्‍प नहीं बचा। सुमीरा बहन को मुंबई ले आईं, पर चंद दिनों में उनके लिए शिवालिका को संभालना मुश्किल हो गया।  
 

saving score / loading statistics ...