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..........ट्रेजेड................

created Jul 18th 2015, 09:00 by AMIT RAIZADA


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माँ की मृत्यु के बाद पिताजी बिल्कुल अकेले पड़ गए। अपना आक्रोश निकालने का जरिया रहने के कारण वे बेहद घुटन महसूस करते। दिन भर कमरे से उस कमरे में बेचैनी से पिंजरे में बंद शेर की तरह चक्कर काटते रहते।
खाने के वे बेहद शौकीन थे। माँ कितनी भी तब़ीयत खराब होती तब भी उनके लिए कचौरी, समोसे दही बड़े बनाती रहती थी। अब ये सब खाने की तीव्र इच्छा होने पर वे होठों पर जीभ फेर रह जाते। बहू की दी हुई ब्रेड और दूध दलिया से उन्हें अक्सर उबकाई आती। किंतु उससे कुछ भी कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती।
पिताजी घोर नास्तिक थे। मंदिर पूजा-पाठ के नाम से ही उन्हें सख्त चिढ़ थी। समय बिताने का यह जरिया भी उनके हाथ में था। उनके हम उम्र लोग सभी ईश्वर देवी-देवता को मानने वाले थे। इसलिए विचारों के मेल खाने से उनकी उनके साथ भी पटती। वे हमेशा जवान लोगों में उठना बैठना चाहते लेकिन जवान लोग उन्हें तनिक भी लिफ्ट ही देते।
बुढ़ापे ने उन्हें गले लगा लिया किंतु वे बुढ़ापे को स्वीकार नहीं कर पाए।

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