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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 4th 2020, 06:23 by Sai computer typing
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एक आदर्श समाज अपने पूर्वजों के दिखाए मार्ग का अनुसरण करता है। प्रागैतिहासिक काल में विकास की गति काफी धीमी थी। तब मनुष्य पूर्वजों के तय किए गए मानदंडों के अनुसार व्यवहार करना सीख रहा था। जरूरी नहीं कि सभी परम्पराएं सही हो। कुछ प्रथाएं, जैसे जातिवाद या सामंतवाद, चरमपंथी विचारधाराओं को जन्म देने वाली रहीं। परन्तु धीमी गति से विकास की ओर अग्रसर उस युग में अच्छी व बुरी दोनों ही तरह की प्रथाएं जीवित थी। जिस समय एशियाई सभ्यता प्रगति पथ पर अग्रसर थी, उस वक्त यूरोप में आधुनिक युग शुरू हो चुका था। अनुसंधान यात्रा के दौरान यूरोप के लोगों ने जब प्राचीन पुस्तकों का अध्ययन किया तो उन्हें अपने पूर्वजों के ज्ञान में खामियों का पता लगा। उन्होंने अपने पूर्वजों की बुद्धिमता पर सवाल उठाने शुरू कर दिएद्य साथ ही यह भी मान लिया कि वर्तमान पीढ़ी पूर्वजों से ज्यादा चतुर और बुद्धिमान है। लोग परम्पराएं छोड़ व्यक्तिगत स्तर पर अधिक सोचने लगे और विवेकाधीन विचारों को महत्व देन लगे।
न्यूटन-डार्विन जैसे वैज्ञानिक ने विश्व को समझने व समझाने के लिए विज्ञान का सहारा लिया, लेकिन इसके बाद हुआ यह कि यूरोप के लोग तकनीकी रूप से अधिक समर्थ हो कर विश्व में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे जबकि भारत को औपनिवेशिक शासन के दौरान कई अभावों का सामना करना पड़ा। डार्विन के नस्ल युद्ध जैसे सिद्धांतों की दुहाइ्र देते हुए नाजियों ने करोड़ो यहूदियों को मार गिराया। कुल मिलकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तकनीकी एवं आर्थिक प्रगति की क्षमताएं हासिल कर लेने के बावजूद इतिहास में जातिगत नरसंहार, तबाही ओर नैतिक पतन का एक काला अध्याय दर्ज हो गया।
परन्तु बीसवी सदी तक आते-आते विकास में एक नया अध्याय मानवाधिकार का भी जुड़ा। बिना विभिन्न नस्लों व वर्गो के लोगों और महिलाओं के योगदान के द्वितीय विश्वयुद्ध जीतना मुश्किल था। नाजीवाद मानवता को तरजीह देने में विफल रहा। बीसवी सर्दी महिलाओं को मताधिकार, नागरिक अधिकार दलित, एलजीबीटी और कई तरह के स्वतंत्रता आंदोलनों के नाम रही। इस संबंध में भारत का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहां ऐसे आंदोलन के चलते कई प्रकार के वंचित वर्गो को सामने आने का मौका मिला।
अमरीका संविधान में जहां पुरूष शब्द का उल्लेख है, वहीं भारतीय संविधान में पुरूष-महिला के एक समान सम्मान की बात प्रस्तावना में ही रेखांकित कर दी गई है। 1960 में गांधीवादी विचारक मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमरीकी मानव अधिकार आंदोलन का नेतृत्व किया और अमरीका को अधिक परिपूर्ण संघ का स्वरूप प्रदान किया। समाज में प्रत्येक जीव का अपना स्थान है। भारतीय समाज में किन्नरों की भागीदारी सीमित हुआ करती थी। जैसे-जैसे समाज की सोच बदली, उन्हें समाज का ही एक हिस्सा माना जाने लगा। भारत और अमरीकी संविधान में मानवता की गरिमा को बखूबी रेखांकित किया गया है। सवाल यह है कि हम रूढियो से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा कर पाएंगे या नहीं? या फिर मानवाधिकारों को ताक पर रखने वाली प्रथाओं को जीवित रखेगे।
न्यूटन-डार्विन जैसे वैज्ञानिक ने विश्व को समझने व समझाने के लिए विज्ञान का सहारा लिया, लेकिन इसके बाद हुआ यह कि यूरोप के लोग तकनीकी रूप से अधिक समर्थ हो कर विश्व में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे जबकि भारत को औपनिवेशिक शासन के दौरान कई अभावों का सामना करना पड़ा। डार्विन के नस्ल युद्ध जैसे सिद्धांतों की दुहाइ्र देते हुए नाजियों ने करोड़ो यहूदियों को मार गिराया। कुल मिलकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तकनीकी एवं आर्थिक प्रगति की क्षमताएं हासिल कर लेने के बावजूद इतिहास में जातिगत नरसंहार, तबाही ओर नैतिक पतन का एक काला अध्याय दर्ज हो गया।
परन्तु बीसवी सदी तक आते-आते विकास में एक नया अध्याय मानवाधिकार का भी जुड़ा। बिना विभिन्न नस्लों व वर्गो के लोगों और महिलाओं के योगदान के द्वितीय विश्वयुद्ध जीतना मुश्किल था। नाजीवाद मानवता को तरजीह देने में विफल रहा। बीसवी सर्दी महिलाओं को मताधिकार, नागरिक अधिकार दलित, एलजीबीटी और कई तरह के स्वतंत्रता आंदोलनों के नाम रही। इस संबंध में भारत का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहां ऐसे आंदोलन के चलते कई प्रकार के वंचित वर्गो को सामने आने का मौका मिला।
अमरीका संविधान में जहां पुरूष शब्द का उल्लेख है, वहीं भारतीय संविधान में पुरूष-महिला के एक समान सम्मान की बात प्रस्तावना में ही रेखांकित कर दी गई है। 1960 में गांधीवादी विचारक मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमरीकी मानव अधिकार आंदोलन का नेतृत्व किया और अमरीका को अधिक परिपूर्ण संघ का स्वरूप प्रदान किया। समाज में प्रत्येक जीव का अपना स्थान है। भारतीय समाज में किन्नरों की भागीदारी सीमित हुआ करती थी। जैसे-जैसे समाज की सोच बदली, उन्हें समाज का ही एक हिस्सा माना जाने लगा। भारत और अमरीकी संविधान में मानवता की गरिमा को बखूबी रेखांकित किया गया है। सवाल यह है कि हम रूढियो से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा कर पाएंगे या नहीं? या फिर मानवाधिकारों को ताक पर रखने वाली प्रथाओं को जीवित रखेगे।
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