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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Sep 16th 2020, 09:33 by rajni shrivatri
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पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही है। हमारे देश में यह समस्या दिनो-दिन बढ रही है। दुनिया में रोज पौने दो लाख नए संक्रमित आ रहे है। इनमें से एक लाख अकेले भारत में। विश्वभर में रोज सवा तीन हजार लोग मर रहे है, इनमें 11-12 सौ अकेले भारत में। लेकिन न्यूज चैनलों को इससे ज्यादा सरोकार नहीं है। वे कई दिनों से लगातार, बिना सांस रोके, सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती, कंगना राउत दिखा रहे है। आखिर हम कहां जा रहे है? कहां जाना चाहते है। व्यावसायिकता पहले भी थी लेकिन ऐसी नहीं कि टीआरपी की होड़ के तेज बहाव में नैतिकता, मर्यादा, सहनशीलता, सब कुछ नितके की तरह बहता चला जाए। भाषा तो मर्यादा या हदों के उस पार से शुरू हो रही है। एक के बाद एक बयान आते हैं और इन बयानों के चक्रव्यूह में अलग-अलग पार्टियों के नेताओं को उलझाया जाता है। ये नेता भाषा की तमाम मर्यादाएं लांघकर अपने आकाओं को खुश करने के लिए कुछ तो भी बोलते है।
जहां तक संवाद की बात है, उसकी जगह अब चीखने-चिल्लाने वाली बहस ने ले ली है। बहस भी कैसे होती है- एक पक्ष का प्रतिनिधि, दूसरा विपक्ष का। तीसरा विशेषज्ञ, इन दोनों को धमकाने वाला और चौथा एंकर, इन तीनों को उकसाने वाला। निष्पक्षता तो जैसे अपराध हो गई है। कुछ पक्ष तो निष्पक्षता को देशद्रोह भी कहने या मानने लगे है। परिवार, समाज, संस्कृति, मूल्य, सबे के सब झूठी बहसों और फर्जी मुद्दों की चकाचौंध में खो गए है। यही वजह है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो बॉलीवुड का हो, या किसी और क्षेत्र का, इन भटकने वाले मुद्दों पर बात तक नहीं करना चाहता। सरकारें, किसी को भी ठिकाने लगाने में अपनी बहादुरी समझती है, वे विरोध के किसी भी स्वर को कुचलने के लिए बनी हो।
कुल मिलाकर, आम आदमी को मुद्दों से भटकाने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो इसके तमाम कारक अपनी प्रासंगिकता खो देंगे। नेता भी पार्टिया भी और कुछ न्यूज चैनल भी।
जहां तक संवाद की बात है, उसकी जगह अब चीखने-चिल्लाने वाली बहस ने ले ली है। बहस भी कैसे होती है- एक पक्ष का प्रतिनिधि, दूसरा विपक्ष का। तीसरा विशेषज्ञ, इन दोनों को धमकाने वाला और चौथा एंकर, इन तीनों को उकसाने वाला। निष्पक्षता तो जैसे अपराध हो गई है। कुछ पक्ष तो निष्पक्षता को देशद्रोह भी कहने या मानने लगे है। परिवार, समाज, संस्कृति, मूल्य, सबे के सब झूठी बहसों और फर्जी मुद्दों की चकाचौंध में खो गए है। यही वजह है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो बॉलीवुड का हो, या किसी और क्षेत्र का, इन भटकने वाले मुद्दों पर बात तक नहीं करना चाहता। सरकारें, किसी को भी ठिकाने लगाने में अपनी बहादुरी समझती है, वे विरोध के किसी भी स्वर को कुचलने के लिए बनी हो।
कुल मिलाकर, आम आदमी को मुद्दों से भटकाने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो इसके तमाम कारक अपनी प्रासंगिकता खो देंगे। नेता भी पार्टिया भी और कुछ न्यूज चैनल भी।
