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योगेश टायपिंग सेंटर छतरपुर (म.प्र.) 9993129162...
created Sep 16th 2020, 04:07 by Yogesh
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एक दिन गली में एक ज्योितिषी आया। बच्चों के लिए रीछ और स्त्रियों के लिए ज्योतिषी दोनों समान हैं। स्त्रियों को तमाशा हाथ लग गया। बढ़-चढ़ कर हाथ दिखाने लगीं। ज्योतिषी बातें बनाता था, पैसे बटोरता था। कैसा अच्छा व्यापार है। किसी का माल नहीं बिकता, किसी की बातें बिकती हैं। स्त्रियां पैसे देती थीं और हंसती थीं, मगर पार्वती घर बैठी अपने दुर्भाग्य को रो रही थी।
इतने में उसकी सास ने कहा - पार्वती। जरा इधर आ कर तू भी पंडितजी को हाथ दिखा ले।
पार्वती ने निराश भाव से उत्तर दिया - हाथ दिखाने से क्या होगा।
मगर हर्ज ही क्या है। दिखा ले।
पार्वती का जी न चाहता था कि हाथ दिखाए, परंतु सास के भय से उसने उठ कर हाथ ज्योतिषी के सामने कर दिया। सब स्त्रियां चुपचाप खड़ी हो गईं।
यह हस्त-निरीक्षण न था, भाग्य-निरीक्षण था।
''तुम्हारे मन में हमेशा क्लेश रहता है।''
पार्वती की सास ने सिर हिला कर कहा - ठीक है पंडित जी।
ज्योतिषी - ''पर यह क्लेश मन का है, शरीर का नहीं।
सास- यह भी सच है...।
ज्योतिषी- तुम उदास न हो। तुम्हारी खातिर यह काम मैं कर दूंगा। भय बहुत है, सिद्धि के समय भूत सामने आ कर खेड़े हो जाते हैं। अनजाने आदमी सहम कर मर जाए। परंतु भूत हमारा क्या बिगाड़ लेंगे, चाहें तो पल-भर में भस्म कर दें। हमारे शब्दों में आग है। मंत्र पढ़े तो चिल्ला कर निकलें।
पार्वती की आंखें आशापूर्ण हो गईं, जैसे देवी का वरदान मिल गया हो।
सास का चेहरा आशा की आभा से लाल था। उसे विश्वास हो गया कि अब जरूर लड़का होगा। करामाती पंडित रेख में मेख मार सकता है। ज्योतिषी की खातिरदारी होने लगी। उसने जो कुछ मांगा वही दिया। पार्वती और उसकी सास न नहीं करती थीं। कभी काले बकरे के लिए रूपए मांगता, कभी सोने-चांदी के लिए। उसे आज तक न ऐसा अमीर घर मिला था, न ऐसे अंध श्रद्धालु।
दोनों हाथों से लूटता था। और वह लुटवाते थे। हर मंगलवार को गरीबों में रोटियां बांटी जाती थीं। ज्योतिषी जी ने पार्वती को एक मंत्र सिखा दिया था। वह नहा कर पंद्रह मिनट जाप करती थी। खाना भूल सकता था, मगर इस मंत्र का जाप न भूल सकती। अब इस मंत्र पर जीवन की सारी अभिलाषाएं अवलंबित थीं। सदा शंका लगी रहती कहीं यह कच्चा तागा टूट न जाए। वह इसे प्राणपण से बचा कर रखती थी, यहां तक कि मंत्र की परीक्षा का दिन समीप आ गया। अब कुछ दिन बाकी थे।
पार्वती की रात-दिन खातिरदारियां होने लगीं। घर के लोग उसे कोई काम न करने देते थे।
इतने में उसकी सास ने कहा - पार्वती। जरा इधर आ कर तू भी पंडितजी को हाथ दिखा ले।
पार्वती ने निराश भाव से उत्तर दिया - हाथ दिखाने से क्या होगा।
मगर हर्ज ही क्या है। दिखा ले।
पार्वती का जी न चाहता था कि हाथ दिखाए, परंतु सास के भय से उसने उठ कर हाथ ज्योतिषी के सामने कर दिया। सब स्त्रियां चुपचाप खड़ी हो गईं।
यह हस्त-निरीक्षण न था, भाग्य-निरीक्षण था।
''तुम्हारे मन में हमेशा क्लेश रहता है।''
पार्वती की सास ने सिर हिला कर कहा - ठीक है पंडित जी।
ज्योतिषी - ''पर यह क्लेश मन का है, शरीर का नहीं।
सास- यह भी सच है...।
ज्योतिषी- तुम उदास न हो। तुम्हारी खातिर यह काम मैं कर दूंगा। भय बहुत है, सिद्धि के समय भूत सामने आ कर खेड़े हो जाते हैं। अनजाने आदमी सहम कर मर जाए। परंतु भूत हमारा क्या बिगाड़ लेंगे, चाहें तो पल-भर में भस्म कर दें। हमारे शब्दों में आग है। मंत्र पढ़े तो चिल्ला कर निकलें।
पार्वती की आंखें आशापूर्ण हो गईं, जैसे देवी का वरदान मिल गया हो।
सास का चेहरा आशा की आभा से लाल था। उसे विश्वास हो गया कि अब जरूर लड़का होगा। करामाती पंडित रेख में मेख मार सकता है। ज्योतिषी की खातिरदारी होने लगी। उसने जो कुछ मांगा वही दिया। पार्वती और उसकी सास न नहीं करती थीं। कभी काले बकरे के लिए रूपए मांगता, कभी सोने-चांदी के लिए। उसे आज तक न ऐसा अमीर घर मिला था, न ऐसे अंध श्रद्धालु।
दोनों हाथों से लूटता था। और वह लुटवाते थे। हर मंगलवार को गरीबों में रोटियां बांटी जाती थीं। ज्योतिषी जी ने पार्वती को एक मंत्र सिखा दिया था। वह नहा कर पंद्रह मिनट जाप करती थी। खाना भूल सकता था, मगर इस मंत्र का जाप न भूल सकती। अब इस मंत्र पर जीवन की सारी अभिलाषाएं अवलंबित थीं। सदा शंका लगी रहती कहीं यह कच्चा तागा टूट न जाए। वह इसे प्राणपण से बचा कर रखती थी, यहां तक कि मंत्र की परीक्षा का दिन समीप आ गया। अब कुछ दिन बाकी थे।
पार्वती की रात-दिन खातिरदारियां होने लगीं। घर के लोग उसे कोई काम न करने देते थे।
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