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साई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Aug 8th 2020, 15:04 by rajni shrivatri


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हमारे पास दो तरह के बीज होते है सकारात्‍मक विचार एंव नकारात्‍मक विचार है, जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एंव व्‍यवहार रूपी पेड़ का निर्धारण करता है। हम जैसा सोचते है वैसा बन जाते है इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते है वैसा ही हमारा आचरण होता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रूपी जमीन में कौनसा बीज बौते है। थोड़ी सी चेतना एवं सावधानी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते है।  
बाइबिल की एक कहानी काफी प्रसिद्ध है। एक गांव में गोलियथ नाम का एक राक्षस था। उससे हर व्‍यक्ति डरता था एंव परैशान था। एक दिन डेविड नाम का भेड चराने वाला लड़का उसी गांव में आया जहां लोग राक्षस के आतंक से भयभीत थे। डेविड ने लोगों से कहा कि आप लोग इस राक्षस से लड़ते क्‍यों नही हो?  
तब लोगों ने कहा- वो इतना बड़ा है कि उसे मारा नहीं जा सकता। डेविड ने कहा- आप सही कर रहे है कि वह राक्षस बहुत बड़ा है। लेकिन बात ये नही है कि बड़ा होने की वजह से उसे मारा नहीं जा सकता, बल्कि हकीकत तो ये है कि वह इतना बडा है उस पर लगाया निशाना चूक ही नही सकता। फिर डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार दिया। क्‍योंकि डेविस की सोच अलग थी।  
जिस तरह काले रंग का चश्‍मा पहनने पर हमें सब कुछ काला और लाल रंग का चश्‍मा पहनने पर हमें सब कुछ लाल ही दिखाई देता है उसी प्रकार नेगेटिव सोच से हमें अपने चारों ओर निराशा, दु:ख और असंतोष ही दिखाई देगा और पॉजिटिव सोच से हमें आशा, खुशियां एंव संतोष ही नजर आएगा। यह हम पर निर्भर करता है कि सकारात्‍मक चश्‍मे से इस दुनिया को देखते है या नकारात्‍मक चश्‍मे से। अगर हमने पॉजिटिव चश्‍मा पहना है तो हमें हर व्‍यक्ति अच्‍छा लगेगा और हम प्रत्‍येक व्‍यक्ति में कोई कोई खूबी ढूंढ ही लेगे लेकिन अगर हमने नकारात्‍मक चश्‍मा पहना है तो हम बुराइयां खोजने वाले कीड़े बन जाएंगे।
सकारात्‍मकता की शुरूआत आशा और विश्‍वास से होती है। किसी जगह पर चारों ओर अंधेरा है और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा और वहां पर हम एक छोटा सा दीपक जला देंगे तो उस दीपक में इतनी शक्ति है कि वह छोटा सा दीपक चारों ओर फैले अंधेरे को एक पल में दूर कर देगा। इसी तरह आशा की एक किरण सारे नकारात्‍मक विचारों को एक पल में मिटा सकती है। नकारात्‍मका को नकारात्‍मकता समाप्‍त नहीं कर सकती, नकारात्‍मकता को तो केवल सकारात्‍मकता ही समाप्‍त कर सकती है। इस‍ीलिए जब भी कोई छोटा सा नकारात्‍मक विचार मन में आये उसे उसी पल सकारात्‍मक विचार में बदल देना चाहिए।   
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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