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अभ्यास-40 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created Aug 1st 2020, 06:08 by sourabh indurkhya
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छात्रों में आज भी अराजकता दिखाई दे रही है, उसके लिए मुख्य रूप से छात्रों के अभिभावक, संरक्षक, शिक्षक और अन्य वयस्क उत्तरदायी है । आजादी लेने के लिए हमने हड़ताल और भूख-हड़तालें की । इनका मनोवैज्ञानिक प्रभाव वर्तमान समाज पर स्पष्ट है ।
एक अन्य मुख्य कारण हमारा राजनैतिक ढ़ाँचा भी है । हमने मतदान प्रणाली अपनाई है । एक व्यक्ति तब तक चुनाव नहीं जीत सकता जब तक उसे आस-पास के लोगों का सहयोग और समर्थन प्राप्त न हो जाए । इसके लिए वह कई प्रकार से प्रयास करता है, पैसे खर्च करता है और अपने आदमी रखता है । विद्यार्थी उनमें से है, जिनके कन्धे पर बन्दूक रखकर राजनीतिज्ञ अपना स्थान बनाना चाहते है । एक साधारण छात्र राजनीतिज्ञ की चालों से अक्सर अनभिज्ञ ही होता है और अपनी पढ़ाई की कीमत पर मैदान में उतर आता है । यही से विद्यार्थी आव्हान पर कालेज में हड़ताल और भूख-हड़ताल शुरू हो जाती है और इन सब के बीच उसे ''हीरो'' बनने का अवसर मिल जाता है । वर्तमान राजनीतिज्ञ ढ़ाँचेे की इस चर्चा से अभिप्राय यह नही है कि लोकतन्त्रवाद को समाप्त कर अधिनायकवाद का सहारा ले । कहने का तात्पर्य यह है नही है कि हम पढ़े लिखे तो है, गुने नहीं दूसरे शब्दो में साक्षर हैं, शिक्षित नहीं । इसलिये कर्त्तव्यों को पूरी तरह से समझे बिना अधिकार नही माँगते । नारे बाजी में हमारी यही आस्था मुसीबत बन गई है ।
छात्रों में अनुशासनहीनता के लिए हमारी शिक्षा पद्धति भी बहुत हद तक जिम्मेदार है । शिक्षा प्रणाली में अमूल परिवर्तन की आवश्यकता समय की मांग है । ऐसे योग्य और प्रतिभाशाली शिक्षकों का अभाव है जिन्हें विद्यार्थियों का सम्मान प्राप्त हो । प्राय: देखा जाता है कि जब छात्र शिक्षक को कुल न समझे, तो वे ज्ञान अर्जित नही कर सकते है । शिक्षक का कर्तव्य है कि वह स्वयं तो गाइड व कुंजियों से दूर रहे, साथ ही विद्यार्थियों को भी उनके कुप्रभाव से अवगत कराए । यदि हो सके तो गाइडो और कुंजियो के प्रकाशन पर रोक लगा देना चाहिए । परीक्षा में बैठने के लिए उपस्थिति नब्बे प्रतिशत अनिवार्य कर देना चाहिए, क्योंकि समय कम होगा तो छात्रों को शिक्षा के अतरिक्त अन्य गतिविधियों के लिए वक्त नहीं मिलेगा । माता-पिता की दिलचस्पी भी विद्यार्थियों को अनुशासित बनाए रखने में सहायक होती है । यदि अभिभावक छात्र की पढ़ाई तथा अन्य रूचियों के बीच उदासीन रहेगा और वांछनीय स्नेह देखकर व देकर पथ-प्रदर्शन नही करेगा तो छात्र का बहक जाना स्वाभाविक ही है । भाविष्य के प्रति अनिश्चितता दूर करके भी अनुशासनहीनता को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है । जब नवयुवक को यह विश्वास हो कि वर्षो तक परिश्रम करने और डिग्रियां लेने के बाद भी नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ेगा, तो उसका विद्रोह करना स्वाभाविक ही है ।
एक अन्य मुख्य कारण हमारा राजनैतिक ढ़ाँचा भी है । हमने मतदान प्रणाली अपनाई है । एक व्यक्ति तब तक चुनाव नहीं जीत सकता जब तक उसे आस-पास के लोगों का सहयोग और समर्थन प्राप्त न हो जाए । इसके लिए वह कई प्रकार से प्रयास करता है, पैसे खर्च करता है और अपने आदमी रखता है । विद्यार्थी उनमें से है, जिनके कन्धे पर बन्दूक रखकर राजनीतिज्ञ अपना स्थान बनाना चाहते है । एक साधारण छात्र राजनीतिज्ञ की चालों से अक्सर अनभिज्ञ ही होता है और अपनी पढ़ाई की कीमत पर मैदान में उतर आता है । यही से विद्यार्थी आव्हान पर कालेज में हड़ताल और भूख-हड़ताल शुरू हो जाती है और इन सब के बीच उसे ''हीरो'' बनने का अवसर मिल जाता है । वर्तमान राजनीतिज्ञ ढ़ाँचेे की इस चर्चा से अभिप्राय यह नही है कि लोकतन्त्रवाद को समाप्त कर अधिनायकवाद का सहारा ले । कहने का तात्पर्य यह है नही है कि हम पढ़े लिखे तो है, गुने नहीं दूसरे शब्दो में साक्षर हैं, शिक्षित नहीं । इसलिये कर्त्तव्यों को पूरी तरह से समझे बिना अधिकार नही माँगते । नारे बाजी में हमारी यही आस्था मुसीबत बन गई है ।
छात्रों में अनुशासनहीनता के लिए हमारी शिक्षा पद्धति भी बहुत हद तक जिम्मेदार है । शिक्षा प्रणाली में अमूल परिवर्तन की आवश्यकता समय की मांग है । ऐसे योग्य और प्रतिभाशाली शिक्षकों का अभाव है जिन्हें विद्यार्थियों का सम्मान प्राप्त हो । प्राय: देखा जाता है कि जब छात्र शिक्षक को कुल न समझे, तो वे ज्ञान अर्जित नही कर सकते है । शिक्षक का कर्तव्य है कि वह स्वयं तो गाइड व कुंजियों से दूर रहे, साथ ही विद्यार्थियों को भी उनके कुप्रभाव से अवगत कराए । यदि हो सके तो गाइडो और कुंजियो के प्रकाशन पर रोक लगा देना चाहिए । परीक्षा में बैठने के लिए उपस्थिति नब्बे प्रतिशत अनिवार्य कर देना चाहिए, क्योंकि समय कम होगा तो छात्रों को शिक्षा के अतरिक्त अन्य गतिविधियों के लिए वक्त नहीं मिलेगा । माता-पिता की दिलचस्पी भी विद्यार्थियों को अनुशासित बनाए रखने में सहायक होती है । यदि अभिभावक छात्र की पढ़ाई तथा अन्य रूचियों के बीच उदासीन रहेगा और वांछनीय स्नेह देखकर व देकर पथ-प्रदर्शन नही करेगा तो छात्र का बहक जाना स्वाभाविक ही है । भाविष्य के प्रति अनिश्चितता दूर करके भी अनुशासनहीनता को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है । जब नवयुवक को यह विश्वास हो कि वर्षो तक परिश्रम करने और डिग्रियां लेने के बाद भी नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ेगा, तो उसका विद्रोह करना स्वाभाविक ही है ।
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