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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jul 31st 2020, 14:52 by sandhya shrivatri
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				दो दशक से युद्ध और हिंसा से जूझ रहे पड़ोसी देश अफगानिस्तान में शांति की उम्मीद बंधी है। अमरीका ने अफगानिस्तान के उसी आतंकी गुट तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए है जिसके खिलाफ अमरीका ने खुद पर 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकी हमले के बाद से युद्ध छेड़ रखा था। एक तरह से तालिबान को नेस्तनाबूद करने की ठान रखी थी अमरीका ने। अमरीका ने हमले के बाद तालिबान के खिलाफ जंग के लिए अपने सैनिक अफगानिस्तान में भेजे थे। कतर के दोहा में शनिवार को अमरीका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते के तहत अमरीका अगले 14 महीने में अफगानिस्तान से सभी बलों को वापस बुलाएगा। तालिबान ने बदले में अमरीका को भरोसा दिलाया है कि वह अल-कायदा और दूसरे विदेशी आतंकवादी समूहों से नाता तोड़ लेगा। साथ ही अफगानिस्तान की धरती को आतंकवादी गतिविधियों के लिए हस्तेमाल नहीं होने देने में अमरीका की मदद करेगा। यों तो अफगानिस्तान पिछले चार दशक से अस्थिरता व अशांति को शिकार रहा है। इस समझौते के बाद भी अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अफगानिस्तान का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? इस्लामिक व्यवस्था के प्रबल पक्षधर तालिबान की हुकूमत अफगानिस्तान में कायम हो जाती है तो परोक्ष रूप से यह पाकिस्तान के पक्ष में होगा।  
अमरीका ने इतना जरूर कहा है कि तालिबान के शांति समझौते की पालना करने पर ही अफगानिस्तान से अमरीका सैनिकों की वापसी होगी। लेकिन समझौते की पालना के बाद भारत के समाने खड़ी चिंताओं को भी समझना होगा। क्या इस समझौते के बाद तालिबान आतंकी गतिविधियों से दूरी बना पाएंगे? क्या यह समझौता कर अमरीका अपनी आतंकवाद निरोधी प्रतिबद्धता को दिखाने में कामयाब रहेगा। और यह भी कि क्या इस समझौते पर पूरी तरह से अमल हो पाएगा। भारत की चिंता इसलिए भी वाजिब है क्योंकि वह पहले से ही अफगानिस्तान में अरबो डॉलर की लागत से कई बड़ी परियोजनाएं पूरी कर चुका है। इनमें से कुछ पर अभी काम चल रहा है। भारत ने अब तब अफगानिस्तान को करीब तीन अरब डॉलर की मदद दी है, जिससे वहां संसद भवन, सड़कों और बांध आदि का निर्माण हुआ है। अफगानिस्तान में तालिबान के कदम पसारने से वहां की नवनिर्वाचित सरकार को खतरा हुआ तो भारतीय सहयोग से जारी कई विकास परियोजनाएं प्रभावित होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अफगानिस्तान में महिला उत्थान व शैक्षाणिक जागृति का माहौल कायम रह पाएगा, यह भी देखना है।
			
			
	        अमरीका ने इतना जरूर कहा है कि तालिबान के शांति समझौते की पालना करने पर ही अफगानिस्तान से अमरीका सैनिकों की वापसी होगी। लेकिन समझौते की पालना के बाद भारत के समाने खड़ी चिंताओं को भी समझना होगा। क्या इस समझौते के बाद तालिबान आतंकी गतिविधियों से दूरी बना पाएंगे? क्या यह समझौता कर अमरीका अपनी आतंकवाद निरोधी प्रतिबद्धता को दिखाने में कामयाब रहेगा। और यह भी कि क्या इस समझौते पर पूरी तरह से अमल हो पाएगा। भारत की चिंता इसलिए भी वाजिब है क्योंकि वह पहले से ही अफगानिस्तान में अरबो डॉलर की लागत से कई बड़ी परियोजनाएं पूरी कर चुका है। इनमें से कुछ पर अभी काम चल रहा है। भारत ने अब तब अफगानिस्तान को करीब तीन अरब डॉलर की मदद दी है, जिससे वहां संसद भवन, सड़कों और बांध आदि का निर्माण हुआ है। अफगानिस्तान में तालिबान के कदम पसारने से वहां की नवनिर्वाचित सरकार को खतरा हुआ तो भारतीय सहयोग से जारी कई विकास परियोजनाएं प्रभावित होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अफगानिस्तान में महिला उत्थान व शैक्षाणिक जागृति का माहौल कायम रह पाएगा, यह भी देखना है।
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