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created Jul 23rd 2020, 12:55 by sourabh Sahu


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सन 1960 से पंचायती राज व्‍यवस्‍था की कार्य प्रणाली के विविध पक्षों का अध्‍ययन करने के लिए अनेक अध्‍ययन दल, समितियां  तथा कार्यदल नियुक्‍त किए जाते रहे हैं। अशोक मेहता समिति दिसंबर 1977 में, जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्‍यक्षता में पंचायती राज संस्‍थाओं पर एक समिति को गठन किया। इसने अगस्‍त 1978 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और देश में पतनोन्‍मुख पंचायती राज पद्धति को पुनर्जीवित और मजबूत करने हेतु 132 सिफारिशें कीं। इसकी मुख्‍य सिफारिशें इस प्रकार हैं:  
1. त्रिस्‍तरीय पंचायती राज पद्धति को द्धिस्‍तरीय पद्धति में बदलना चाहिए। जिला परिषद जिला स्‍तर पर, और उससे नीचे मंडल पंचायत में 15,000 से 20,000 जनसंख्‍या वाले गांवों में समूह होने चाहिए।  
2. राज्‍य स्‍तर के नीचे लोक निरीक्षण में विकेंद्रीकरण के लिए जिला ही प्रथम बिंदु होना चाहिए।  
3. जिला परिषद कार्यकारी निकाय होना चाहिए और वह राज्‍य स्‍तर पर योजना और विकास के लिए जिम्‍मेदार बनाया जाए।  
4. पंचायती चुनावों में सभी स्‍तर पर राजनीतिक पार्टियों की आधिकारिक भागीदारी हो।  
5. अपने आर्थिक स्‍त्रोतों के लिए पंचायती राज संस्‍थाओं के पास कराधान की अनिवार्य शक्ति हो।  
6. जिला स्‍तर के अभिकरण और विधायिकों से बनी समिति द्वारा संस्‍था का नियमित सामाजिक लेखा परीक्षण होना चाहिए ताकि यह ज्ञात हो सके कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सुभेघ समूहों के लिए आवंटित राशि उन तक पहुंच रही है अथवा नहीं।  
7. राज्‍य सरकार द्वारा पंचायती राज संस्‍थाओं का अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए। आवश्‍यक अधिक्रमण करने की दशा में अधिक्रमण के छह महीने के भीतर चुनाव हो जाने चाहिए।  
8. न्‍याय पंचायत को विकास पंचायती से अलग निकाय के रूप में रखा जाना चाहिए। एक योग्‍य न्‍यायाधीश द्वारा इनका सभापतित्‍व किया जाना चाहिए।  
9. राज्‍य के मुख्‍य चुनाव अधिकारी द्वारा मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त के परामर्श से पंचायती राज चुनाव कराए जाने चाहिए।  
10. विकास के कार्य जिला परिषद को स्‍थानांतरित  होने चाहिए और सभी विकास कर्मचारी इसके नियंत्रण और देखरेख में होने चाहिए।   

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