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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created May 29th 2020, 12:12 by vinitayadav


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भारतीय उच्‍च न्‍यायालय अधिनियम के लागू होने से पहले भारत में दो प्रकार के न्‍यायालय कार्यरत थे। यह थे सम्राट के न्‍यायालय और कंपनी के न्‍यायालय और कंपनी के न्‍यायालय, जिनके अधिकार क्षेत्र भिन्‍न थे और जिन्‍होंने दोहरी न्‍याय प्रणाली को जन्‍म दिया था। इन दो प्रकार के न्‍यायालयों को एकीकृत करने के प्रयास सन् 1861 के बहुत पहले ही प्रारंभ हो गये थे। सन् 1858 में ईस्‍ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया गया और ब्रिटिश सम्राज्ञी द्वारा भारत के शासन को प्रत्‍यक्ष रूप से संभालने की नीति ने दो प्रकार के न्‍यायालयों के एकीकरण की समस्‍या का निराकरण बहुत आसान कर दिया। सभी लोगों पर लागू होने वाली भारतीय दंड संहिता तथा दीवानी और आपराधिक प्रक्रिया संहिताऍं पारित की गई तथा तत्‍कालीन उच्‍चतम न्‍यायालयों और सदर अदालतों का समामेलन न्‍यायिक प्रशासन में एकरूपता लागू करने का अगला कदम था। इस लक्ष्‍य की प्राप्ति ब्रिटिश संसद द्वारा सन् 1861 में पारित भारतीय उच्‍च न्‍यायालय अधिनियम (24 और 25 विक्‍टो0) द्वारा हुई, जिससे ब्रिटेन की महारानी को उच्‍चतम न्‍यायालयों तथा सदर अदालतों को समाप्‍त करने और उनकी जगह बम्‍बई, कलकत्‍ता एवं मद्रास की तीनों प्रेसीडेंसियों में एक-एक उच्‍च न्‍यायालय जिसे प्रेसीडेंसी नगरों तथा मोफस्मिल के भी सभी न्‍यायालयों में सर्वोच्‍च होना था, के गठन का अधिकार दिया गया। उक्‍त विधेयक पेश करने के समय सर चार्ल्‍स वुड ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि संपूर्ण देश में केवल एक सर्वोच्‍च न्‍यायालय होगा तथा दो के बजाय केवल एक अपील न्‍यायालय होगा और चूंकि कनिष्‍ठ न्‍यायालयों में न्‍यायिक प्रशासन उन निर्देशों पर आधारित होता है जो उनके द्वारा ऊपर की अदालतों में भेजी गई अपील का निस्‍ताररण करते समय जारी किये जाते है, अत: मुझे आशा है कि इस प्रकार गठित उच्‍चतर न्‍यायालय सामान्‍य रूप से पूरे भारत में न्‍यायिक प्रशासन में सुधार लाऍंगे।  
इसी अधिनियम की धारा 16 के द्वारा क्राउन को ब्रिटिश भारत में किसी अन्‍य उच्‍च न्‍यायालय का गठन करने का अधिकार भी दिया गया था। उक्‍त धारा के द्वारा प्रदत्‍त शक्तियों के आधार पर क्राउन ने लेटर्स पेटेंट के द्वारा फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी के उत्‍तरी-पश्चिमी प्रदेशों के लिये एक उच्‍च न्‍यायालय का गठन सन् 1966 में आगरा में किया। इसे उत्‍तरी-पश्चिमी प्रदेशों के लिए उच्‍च न्‍यायालय की संज्ञा दी गयी जिसके मुख्‍य न्‍यायाधीश सर वाल्‍टर मोर्गन तथा अन्‍य पांच न्‍यायाधीशों के नामों का उल्‍लेख स्‍वयं चार्टर में था। उच्‍च न्‍यायालय का गठन अभिलेख न्‍यायालय के रूप में किया गया था (खंड-1) इसकी स्‍थापना के साथ ही आगरा प्रदेश में पिछले 35 वर्षो से कार्य कर रही सदर दीवानी अदालत और सदर निजाम अदालत को समाप्‍त कर दिया गया और उच्‍च न्‍यायालय अपने लेटर्स पेटेंट और उक्‍त अधिनियम की धारा 16 और 9 के आधार पर सभी अपीलीय और प्रशासनिक शक्तियों से सम्‍पन्‍न हो गया तथा अन्‍य न्‍यायालयों के प्राधिकार और अधिकारिताऍं समाप्‍त हो गयीं।  

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