Text Practice Mode
क्रोध का औचित्य
created May 22nd 2020, 16:50 by 123Aravind
1
196 words
5 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
हम सौ के नोट को जेब में रख कर फिर चेक करते हैं कि कहॉं-कहॉं खर्च किया, क्या हमने यह भी कभी चेक किया कि दिन में कितनी बार क्रोध किया और उसमें कितना जायज़ था? यदि हम चेक करें तो पायेंगे कि सौ प्रतिशत हमारा क्रोध नाजायज़ होता है। यह क्रोध हमें अन्दर ही अन्दर इतना खोखला करता है जैसे कोई अमीर फिज़ूलखर्ची से कंगाल हो जाता है। क्रोध तनाव और डिप्रेशन का कारण बनता है; रिश्तों को कड़वा तथा जीवन को बोझिल बनाता है व आयु को निगल जाता है। सामान्य रूप में हम एक मिनट में 10 से 12 बार श्वास लेते हैं लेकिन क्रोध की अवस्था में उसकी गति 20 से 22 बार प्रति मिनट हो जाती है और जब हम परमात्मा की तरफ ध्यान लगाते हैं तो गति 6 से 8 बार प्रति मिनट हो जाती है। निष्कर्ष यही निकलता है कि बार, एक मिनट तक क्रोध करने से हम अपनी आयु के 8 से 10 श्वास खो देते हैं और शान्त रह कर परमात्मा का ध्यान करने से 12 से 14 श्वास बचा लेते हैं इसलिए कहा जाता है कि योगियों की आयु 100 वर्ष से भी ऊपर होती थी।
saving score / loading statistics ...