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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created May 15th 2020, 09:57 by vinitayadav
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भारत में लोकतंत्र है। संघीय ढांचा भी हैं। यह दोनों ही खासियतें, हमारी शान हैं लेकिन कम-ज्यादा हर वक्त यही शान सबसे ज्यादा दांव पर लगी नजर आती हैं। केंद्र हो या राज्य, दोनों जगह सरकारें एक दल की हों या फिर अलग-अलग दलों की, मार इन्हीं दोनों पर पड़ती नजर आती हैं। फिर चाहे वह टकराव के रूप में हो या चुप्पी के रूप में। आज भी हालात कमोबेश देश के संघीय ढांचे के कमजोर होने के ही नजर आ रहे हैं। फिर चाहे वह नागरिकता संशोधन अधिनियम का विवाद हो या फिर प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, आयकर विभाग अथवा एनआइए जैसी जांच एजेंसियों दुरुपयोग के आरोप। यह सारी एजेंसियां देश में आज नई नहीं बनी हैं। एनआइए को छोड़ दें तो सब की सब दशकों पुरानी हैं। ऐसा भी नहीं है कि इनके दुरुपयोग की शिकायतें आज ही आने लगी हैं। पहले भी इनके माध्यम से राजनीतिक हित साधने के आरोप लगते थे, लेकिन इन वर्षों में ऐसे आरोपों की जो बाढ़-सी आई है, वह चिंता बढ़ाने वाली हैं।
इससे भी आगे, पहले टकराव की नौबात नहीं आती थी। केंद्र और राज्य की सरकारें आमने-सामने नहीं होती थीं, लेकिन दुर्भाग्यवश इन सालों में वे सीधे भिड़ने लगी हैं। सबसे पहले यह सीधा टकराव सीबीआई के दुरुपयोग पर आंध्र प्रदेश और केंद्र में हुआ। आंध्र ने तब बाकायदा कानून बनाकर सीबीआई को अपने यहां किसी भी कार्रवाई से प्रतिबंधित कर दिया। कमोबेश ऐसा ही पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने किया। अन्य कई विपक्षी सरकारों के सुर भी बदल गए। फिर एक श्रृंखला चली। नागरिकता संशोधन कानून उनका केंद्र बिंदु बन गया। कई राज्यों की सरकारों ने इस केंद्रीय कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिए। इस पर लगी आग के घेरे से अभी देश जूझ ही रहा है कि दो दिनों से छत्तीसगढ़ में चल रही आयकर विभाग की छापेमारी ने फिर टकराव का माहौल बना दिया हैं। केंद्र पर राजनीतिक कारणों से ऐसा करने के आरोपों के बीच राज्य पुलिस ने नो पार्किंग के बहाने विभाग की गाडि़यों का ही चालान कर दिया। विभाग ने आज फिर सीधे मुख्यमंत्री के दफ्तर में कार्यरत अधिकारी के यहां छापा मारा। भ्रष्टाचार कहीं भी हो, वह रूकना ही चाहिए, लेकिन उसमें राजनीति के आरोपों का आना और दो सरकारों का सीधे टकराना देश के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। इससे पहले कि स्थितियां और बिगड़ें, केंद्र और राज्यों की सरकारों को मिल-बैठकर माहौल को ठीक करने के प्रयास करने चाहिए। ऐसी संवादहीनता किसी भी स्तर पर नहीं रहनी चाहिए, जो कि अंतत: हमारे लोकतंत्र और संघीय ढांचे को तहस-नहस कर दे। आज हम जिस रास्ते पर बढ़ रहे हैं, कम से कम वह तो इन दोनों के भविष्य की अच्छी तस्वीर नहीं दिखाता।
इससे भी आगे, पहले टकराव की नौबात नहीं आती थी। केंद्र और राज्य की सरकारें आमने-सामने नहीं होती थीं, लेकिन दुर्भाग्यवश इन सालों में वे सीधे भिड़ने लगी हैं। सबसे पहले यह सीधा टकराव सीबीआई के दुरुपयोग पर आंध्र प्रदेश और केंद्र में हुआ। आंध्र ने तब बाकायदा कानून बनाकर सीबीआई को अपने यहां किसी भी कार्रवाई से प्रतिबंधित कर दिया। कमोबेश ऐसा ही पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने किया। अन्य कई विपक्षी सरकारों के सुर भी बदल गए। फिर एक श्रृंखला चली। नागरिकता संशोधन कानून उनका केंद्र बिंदु बन गया। कई राज्यों की सरकारों ने इस केंद्रीय कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिए। इस पर लगी आग के घेरे से अभी देश जूझ ही रहा है कि दो दिनों से छत्तीसगढ़ में चल रही आयकर विभाग की छापेमारी ने फिर टकराव का माहौल बना दिया हैं। केंद्र पर राजनीतिक कारणों से ऐसा करने के आरोपों के बीच राज्य पुलिस ने नो पार्किंग के बहाने विभाग की गाडि़यों का ही चालान कर दिया। विभाग ने आज फिर सीधे मुख्यमंत्री के दफ्तर में कार्यरत अधिकारी के यहां छापा मारा। भ्रष्टाचार कहीं भी हो, वह रूकना ही चाहिए, लेकिन उसमें राजनीति के आरोपों का आना और दो सरकारों का सीधे टकराना देश के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। इससे पहले कि स्थितियां और बिगड़ें, केंद्र और राज्यों की सरकारों को मिल-बैठकर माहौल को ठीक करने के प्रयास करने चाहिए। ऐसी संवादहीनता किसी भी स्तर पर नहीं रहनी चाहिए, जो कि अंतत: हमारे लोकतंत्र और संघीय ढांचे को तहस-नहस कर दे। आज हम जिस रास्ते पर बढ़ रहे हैं, कम से कम वह तो इन दोनों के भविष्य की अच्छी तस्वीर नहीं दिखाता।
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