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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created May 14th 2020, 14:10 by rajni shrivatri
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एक बार एक महात्मा बाजार से होकर गुजर रहा था। रास्ते में एक व्यक्ति खजूर बेच रहा था। उस महात्मा के मन में विचार आया कि खजूर लेनी चाहिए। उसने अपने मन को समझाया और वहां से चल दिए। किंतु महात्मा पूरी रात भर सो नहीं पाया।
वह विवश होकर जंगल में गया और जितना बड़ा लकडी का गट्ठा उठा सकता था, उसने उठाया। उस महात्मा ने अपने मन से कहा कि यदि तुझे खजूर खानी है, तो यह बोझ उठाना ही पड़ेगा। महात्मा, थोड़ी दूर ही चलता, फिर गिर जाता, फिर चलता और गिरता। उसमें एक एक गट्ठा उठाने की हिम्मत नहीं थी लेकिन उसने लकड़ी के भारी-भारी दो गट्ठा उठा रखे थे।
दो ढाई मील की यात्रा पूरी करके वह शहर पहुंचा और उन लकडि़यों को बेचकर जो पैसे मिले उससे खजूर खरीदने के लिए जंगल में चल दिया। खजूर सामने देखकर महात्मा का मन बड़ा प्रसन्न हुआ।
महात्मा ने उन पैसों से खजूर खरीदेें लेकिन महात्मा ने अपने मन से कहा कि आज तूने खजूर मांगी है, कल फिर कोई इच्छा करेगी। कल अच्छे-अच्छे कपड़े मांगेगा। तब तो मैं पूरी तरह से तेरा गुलाम ही हो जाऊंगा।
सामने से एक मुसाफिर आ रहा था। महात्मा ने उस मुसाफिर को बुलाकर सारी खजूर उस आदमी को दे दी और खुद को मन का गुलाम बनने से बचा लिया।
वह विवश होकर जंगल में गया और जितना बड़ा लकडी का गट्ठा उठा सकता था, उसने उठाया। उस महात्मा ने अपने मन से कहा कि यदि तुझे खजूर खानी है, तो यह बोझ उठाना ही पड़ेगा। महात्मा, थोड़ी दूर ही चलता, फिर गिर जाता, फिर चलता और गिरता। उसमें एक एक गट्ठा उठाने की हिम्मत नहीं थी लेकिन उसने लकड़ी के भारी-भारी दो गट्ठा उठा रखे थे।
दो ढाई मील की यात्रा पूरी करके वह शहर पहुंचा और उन लकडि़यों को बेचकर जो पैसे मिले उससे खजूर खरीदने के लिए जंगल में चल दिया। खजूर सामने देखकर महात्मा का मन बड़ा प्रसन्न हुआ।
महात्मा ने उन पैसों से खजूर खरीदेें लेकिन महात्मा ने अपने मन से कहा कि आज तूने खजूर मांगी है, कल फिर कोई इच्छा करेगी। कल अच्छे-अच्छे कपड़े मांगेगा। तब तो मैं पूरी तरह से तेरा गुलाम ही हो जाऊंगा।
सामने से एक मुसाफिर आ रहा था। महात्मा ने उस मुसाफिर को बुलाकर सारी खजूर उस आदमी को दे दी और खुद को मन का गुलाम बनने से बचा लिया।
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