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धुआं: गुलजार की कहानी
created May 14th 2020, 05:15 by mrsonu04
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बात सुलगी तो बहुत धीरे से थी, लेकिन देखते ही देखते पूरे क्रस्बे में धुआं भर गया.चौधरी की मौत सुबुह चार बजे हुई थी. सात बजे तक चौधराइन ने रो-धो कर होश सम्भा्ले और सबसे पहले मुलला .खैरून को बुलाया और नौकर को स.ख्तु ताकीद की कि कोई जिक्र न करे. नौकर जब मुल्लार को आंगन में छोड़ कर चला गया तो चौधराइन मुल्लाल को ऊपर .ख्वािबगाह में ले गई. जहां चौधरी की लाश बिस्तमर से उतार कर जमीन पर बिछा दी गई थी. सफेद चादरों के बीच लेटा एक जरदी माइल सफेद भौंवे, दाढ़ी और लम्बें सफेद बाल. चौधरी का चेहरा बड़ा नूरानी लग रहा था.
मुल्ला ने देखते ही ‘एन्नवल्लांहें व इना अलेहे राजेउन’ पढ़ा कुछ रसमी से जुमले कहे. अभी ठीक से बैठा भी ना था कि चौधराइन अलमारी से वसीयतनाम निकाल लाई, मुल्लाह को दिखाया और पढ़ाया भी. चौधरी की आखिरी खुवाहिश थी कि उन्हें दफन के बजाय चिता पर रख के जलाया जाए और उनकी राख को गांव की नदी में बहा दिया जाए, जो उनकी जमीन सीचती हैं.
मुल्लाम पढ़ के चुप रहा. चौधरी ने दीन मजहब के लिए बडें काम किए थे गांव में हिंदू-मुसलामन को एकसा दान देते थें. गांव में कच्चीय मस्जिीद पककी करवा दी थी; और तो और हिन्दुाओं के शमशन की इमारात भी पक्कीं करवाइ्र थी. अब कई वर्षों से बीमार पडे़ थे, लेकिन इस बीमारी के दौरान भी हर रमजान में गरीब गुरबा की अफगरी का इन्तईजाम मस्जिद में उन्हींक की तरफ से हुआ करता था. इलाके के मुसलमान बड़े भक्त. थे उनके, बड़ा अकीदा था उन पर और अब वसीयत पढ़ के बड़ी हैरत हुई मुल्लाी को कहीं झमेंला ना खड़ा हो जाए. आज कल वैसे ही मुल्का की फिजा खराब हो रही थी, हिंदू कुछ ज्याहदा ही हिंदू हो गए थे, मुसलमान कुछ ज्या.दा मुसलमान.
चौधराइन ने कहां, ‘मैं कोंई पाठ पूजा नही करवाना चाहती. बस इतना चाहती हूं किं शमशान में उन्हें जलाने का इन्तारजाम कर दीजिए मैं. रामचन्द्रै पंडित को भी बता सकती थी, लेकिन इस लिए नहीं बुलाया कि बात कहीं बिगड़ न जाए.’
बात बताने ही से बिगड़ गई जब मुल्ला खैरूधीन ने मसलेहतन पंडित रामचंन्द्र को बुला कर समझाया कि, ‘तुम चौधरी को अपने शमशान में जलाने की इजाजत ना देना वरना हो सकता है, इलाके के मुसलमान बावेला खड़ा कर दें, आखिर चौधरी आम आदमी तो था नहीं, बहुत से लोग बहुत तरह से उन से जुडे़ हुए है.’
मुल्ला ने देखते ही ‘एन्नवल्लांहें व इना अलेहे राजेउन’ पढ़ा कुछ रसमी से जुमले कहे. अभी ठीक से बैठा भी ना था कि चौधराइन अलमारी से वसीयतनाम निकाल लाई, मुल्लाह को दिखाया और पढ़ाया भी. चौधरी की आखिरी खुवाहिश थी कि उन्हें दफन के बजाय चिता पर रख के जलाया जाए और उनकी राख को गांव की नदी में बहा दिया जाए, जो उनकी जमीन सीचती हैं.
मुल्लाम पढ़ के चुप रहा. चौधरी ने दीन मजहब के लिए बडें काम किए थे गांव में हिंदू-मुसलामन को एकसा दान देते थें. गांव में कच्चीय मस्जिीद पककी करवा दी थी; और तो और हिन्दुाओं के शमशन की इमारात भी पक्कीं करवाइ्र थी. अब कई वर्षों से बीमार पडे़ थे, लेकिन इस बीमारी के दौरान भी हर रमजान में गरीब गुरबा की अफगरी का इन्तईजाम मस्जिद में उन्हींक की तरफ से हुआ करता था. इलाके के मुसलमान बड़े भक्त. थे उनके, बड़ा अकीदा था उन पर और अब वसीयत पढ़ के बड़ी हैरत हुई मुल्लाी को कहीं झमेंला ना खड़ा हो जाए. आज कल वैसे ही मुल्का की फिजा खराब हो रही थी, हिंदू कुछ ज्याहदा ही हिंदू हो गए थे, मुसलमान कुछ ज्या.दा मुसलमान.
चौधराइन ने कहां, ‘मैं कोंई पाठ पूजा नही करवाना चाहती. बस इतना चाहती हूं किं शमशान में उन्हें जलाने का इन्तारजाम कर दीजिए मैं. रामचन्द्रै पंडित को भी बता सकती थी, लेकिन इस लिए नहीं बुलाया कि बात कहीं बिगड़ न जाए.’
बात बताने ही से बिगड़ गई जब मुल्ला खैरूधीन ने मसलेहतन पंडित रामचंन्द्र को बुला कर समझाया कि, ‘तुम चौधरी को अपने शमशान में जलाने की इजाजत ना देना वरना हो सकता है, इलाके के मुसलमान बावेला खड़ा कर दें, आखिर चौधरी आम आदमी तो था नहीं, बहुत से लोग बहुत तरह से उन से जुडे़ हुए है.’
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