Text Practice Mode
सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Mar 28th 2020, 16:56 by lucky shrivatri
1
328 words
4 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
पिछले दिनों बिहार विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि 2021 में होने वाली जनगणना में जातिगत गणना को शामिल किया जाए। यह ऐसा विषय है जिसके बारे एकराय नहीं हो सकती। फिर भी किसी दल का साहस नहीं कि खुलकर विरोध करे। वैसे 1 सितंबर 2018 को नरेन्द्र मोदी सरकार ने फैसला किया था कि 2021 में अन्य पिछड़ी जातियों की गणना कराई जाएगी। उसके बाद से कई महीनों तक इस पर खूब बहस हुई। चूंकि फिर से यह मांग सामने आ गई है तो इसका विचार करना आवश्यक है क्या जाति जनगणना उचित है?
यह तर्क सुनने में आसान लगता है कि जब अनुसुचित जाति-जनजाति की गणना होती है तो अन्य जातियों की भी हो जानी चाहिए। जाति तो कोई बता देगा लेकिन वह किस श्रेणी में आएगा इसका निर्धारण कठिन है। एक राज्य में जो जाति अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है वह दूसरे राज्य में और केन्द्रीय सूची में भी नहीं है। ऐसी कई जातियां, जो एक राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल है, वह दूसरे राज्य में और केन्द्रीय सूची में नहीं है। सामान्यत: सवर्ण मानी गई कुछ जातियों को भी कुछ राज्यों में पिछड़ी जाति में शामिल कर दिया गया है। इसलिए यदि जातीय जनगणना होती है तो सभी जातियों की होनी चाहिए और इसमें कुछ कॉलम जोडना चाहिए। मसलन, आप आरक्षण की श्रेणी में आते हैं या नहीं, परिवार में किसी को आरक्षण का लाभ मिला या नहीं, उनकी आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव हुआ। आरक्षण से वंचित जातियों से पूछा जा सकता है कि आपके जीविकोपार्जन के साधन क्या है, आपकी आय में कितना अंतर आया है, परिवार की शैक्षणिक स्थिति क्या है आदि। इसके आधार पर आगे आरक्षण सहित सामाजिक न्याय के अन्य कदम उठाने का आधार प्राप्त होगा। हालांकि खतरा यही है कि तब नेताओं का एक समूह जातीय जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग करेगा और इससे जातियों में बंटे हमारे समाज में कई तरह की प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती है।
यह तर्क सुनने में आसान लगता है कि जब अनुसुचित जाति-जनजाति की गणना होती है तो अन्य जातियों की भी हो जानी चाहिए। जाति तो कोई बता देगा लेकिन वह किस श्रेणी में आएगा इसका निर्धारण कठिन है। एक राज्य में जो जाति अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है वह दूसरे राज्य में और केन्द्रीय सूची में भी नहीं है। ऐसी कई जातियां, जो एक राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल है, वह दूसरे राज्य में और केन्द्रीय सूची में नहीं है। सामान्यत: सवर्ण मानी गई कुछ जातियों को भी कुछ राज्यों में पिछड़ी जाति में शामिल कर दिया गया है। इसलिए यदि जातीय जनगणना होती है तो सभी जातियों की होनी चाहिए और इसमें कुछ कॉलम जोडना चाहिए। मसलन, आप आरक्षण की श्रेणी में आते हैं या नहीं, परिवार में किसी को आरक्षण का लाभ मिला या नहीं, उनकी आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव हुआ। आरक्षण से वंचित जातियों से पूछा जा सकता है कि आपके जीविकोपार्जन के साधन क्या है, आपकी आय में कितना अंतर आया है, परिवार की शैक्षणिक स्थिति क्या है आदि। इसके आधार पर आगे आरक्षण सहित सामाजिक न्याय के अन्य कदम उठाने का आधार प्राप्त होगा। हालांकि खतरा यही है कि तब नेताओं का एक समूह जातीय जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग करेगा और इससे जातियों में बंटे हमारे समाज में कई तरह की प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती है।
saving score / loading statistics ...