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साँई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 28th 2020, 09:45 by Jyotishrivatri


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एक शिष्‍य अपने गुरू से सप्‍ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पेदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्‍ते में उसे एक कुआ दिखाई दिया। शिष्‍य प्‍यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया शिष्‍य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्‍योंकि कुएं का जल बेहद मीठा और ठंडा था। शिष्‍य ने सोचा  क्‍यों ना यहां का जल गुरूजी के लिए भी ले चलू उसने अपनी मसक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा वह आश्रम पहुंचा और गुरूजी को सारी बात बताई गुरूजी ने शिष्‍य से मसक लेकर जल पिया और संतुष्टि महसूस की। उन्‍होंने शिष्‍य से कहा वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्‍य को खुशी हुई। गुरूजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्‍य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।  
कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्‍य गुरूजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्‍छा जताई गुरूजी ने मसक शिष्‍य को दी शिष्‍य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्‍ला कर दिया।  
शिष्‍य बोला गुरूजी इस पानी में तो कड़वापन है और ही यह जल शीतल है आपने बेकार ही उस शिष्‍य की इतनी प्रशंसा की गुरूजी बोले बेटा मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्‍या हुआ इसे लाने वाले के मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा यही बात महत्‍वपूर्ण है मुझे भी इस मसक का जल तुम्‍हारी तरह ठीक नहीं लगा पर मैं यह कहकर उसका मन दुखी करना नहीं चाहता था। हो सकता है जब जल मसक में भरा गया तब वह शीतल हो मसक के साफ होने पर यहां तक आते आते यह जल वैसा नही रहा, पर इससे लाने वाले के मन का  प्रेम तो कम नहीं होता है ना।  
सीख- दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्‍छाई खोजी जा सकती है।

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