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Alchemist Book Part-01 By Royal deep Morena Madhya Pradesh, 476001
created Mar 27th 2020, 10:59 by devesh singh
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लड़़के का नाम था सेंटियागो। भेड़ों के झुंड को हॉंकते-हॉंकते शाम का झुटपुटा हो चला था। वह अभी उस सुनसान,वीरान गिरिजाघर तक ही पहुँचा था, जिसकी छत न जाने कब की गिर चुकी थी। हॉं, वहॉं एक गूलर का पेड़ जरूर था।
उसने सोचा, आज की रात यहीं बिताई जाए। अहाते में लगे टूटे-फूटे दरवाजे से, उसने सारी भेड़ों को अंदर कर दिया। दरवाजे पर लकडि़यों की बाड़ लगा दी, ताकि रात को भेड़ें बाहर न निकल सकें। वैसे आसपास भेडि़यों का डर तो न था पर पिछली बार एक भेड़ ऐसे ही रात को बाहर निकल गई थी और उसका अगला सारा दिन उस भेड़ को ढूँढ़ने मे चला गया था।
उसने अपनी जैकेट से फर्श को साफ किया। अभी-अभी पढ़कर खत्म की किताब का सिरहाना बनाया और लेट गया। उसने आप से कहा, अब से मैं मोटी-मोटी किताबें पढूँगा। पढ़ने में ज्यादा वक्त भी लगेगा और तकिया भी अच्छा बनेगा।
आधी टूटी छत से वह आकाश में झिलमिलाते तारे देख सकता था। आज भी उसने वही सपना दुबारा देखा था, जो उसे पिछले हफ्ते दिखाई दिया था। आज भी ठीक उसी तरह सपने के पूरा होने से पहले ही ऑंख खुल गई।
वह उठकर बैठ गया। उसने पास पड़ी लाठी उठाई और उससे सोई हुई भेड़ों को जगाने लगा। मगर उसे लगा कि जैसे ही वो जागा, वैसे ही उसकी भेड़ों में भी हलचल शुरू हो गई थी,मानो कोई ऐसी रहस्यमयी शक्ति थी, जिसने उसके जीवन को उन भेड़ों के साथ जोड़ रखा था। पिछले दो सालों से पानी और चारे की तलाश में वह उन भेड़ों को एक देहात से दूसरे देहात तक हॉंकता रहा है। उसने सोचा लगता है इन भेड़ों को मेरी आदत-सी हो गई है और वे खूब अच्छी तरह समझ गई हैं कि मैं कब क्या करता हूँ। इस बारे में एक पल सोचने पर उसे लगा कि शायद उसका उलट ही ठीक था कि शायद वह ही अपनी भेड़ों की दिनचर्या का अभ्यस्त हो गया था।
पर उन भेड़ों में से कुछ ऐसी भी थीं जिन्हें उठकर खड़े होने में थोड़ा वक्त लगा। ऐसी हर एक भेड़ का नाम ले लेकर उसने अपनी लाठी से कोंचा उसे पूरा यकीन था कि वह जो भी कहता था भेड़ें उसे अच्छी तरह से समझती थी यही वजह थी कि जब भी किसी किताब में कोई बात उसे बहुत अच्छी लगी, तो उसने वह हिस्सा उन भेड़ों को पढ़कर सुनाया था। एक गडरिये के अकेलेपन और घुमक्कड जीवन की खुशियॉं उनसे बॉटी थी। गॉंव की देहात से गुजरते हुए जो उसने देखा था, उस पर टीका टिप्पणी भी की थी।
उसने सोचा, आज की रात यहीं बिताई जाए। अहाते में लगे टूटे-फूटे दरवाजे से, उसने सारी भेड़ों को अंदर कर दिया। दरवाजे पर लकडि़यों की बाड़ लगा दी, ताकि रात को भेड़ें बाहर न निकल सकें। वैसे आसपास भेडि़यों का डर तो न था पर पिछली बार एक भेड़ ऐसे ही रात को बाहर निकल गई थी और उसका अगला सारा दिन उस भेड़ को ढूँढ़ने मे चला गया था।
उसने अपनी जैकेट से फर्श को साफ किया। अभी-अभी पढ़कर खत्म की किताब का सिरहाना बनाया और लेट गया। उसने आप से कहा, अब से मैं मोटी-मोटी किताबें पढूँगा। पढ़ने में ज्यादा वक्त भी लगेगा और तकिया भी अच्छा बनेगा।
आधी टूटी छत से वह आकाश में झिलमिलाते तारे देख सकता था। आज भी उसने वही सपना दुबारा देखा था, जो उसे पिछले हफ्ते दिखाई दिया था। आज भी ठीक उसी तरह सपने के पूरा होने से पहले ही ऑंख खुल गई।
वह उठकर बैठ गया। उसने पास पड़ी लाठी उठाई और उससे सोई हुई भेड़ों को जगाने लगा। मगर उसे लगा कि जैसे ही वो जागा, वैसे ही उसकी भेड़ों में भी हलचल शुरू हो गई थी,मानो कोई ऐसी रहस्यमयी शक्ति थी, जिसने उसके जीवन को उन भेड़ों के साथ जोड़ रखा था। पिछले दो सालों से पानी और चारे की तलाश में वह उन भेड़ों को एक देहात से दूसरे देहात तक हॉंकता रहा है। उसने सोचा लगता है इन भेड़ों को मेरी आदत-सी हो गई है और वे खूब अच्छी तरह समझ गई हैं कि मैं कब क्या करता हूँ। इस बारे में एक पल सोचने पर उसे लगा कि शायद उसका उलट ही ठीक था कि शायद वह ही अपनी भेड़ों की दिनचर्या का अभ्यस्त हो गया था।
पर उन भेड़ों में से कुछ ऐसी भी थीं जिन्हें उठकर खड़े होने में थोड़ा वक्त लगा। ऐसी हर एक भेड़ का नाम ले लेकर उसने अपनी लाठी से कोंचा उसे पूरा यकीन था कि वह जो भी कहता था भेड़ें उसे अच्छी तरह से समझती थी यही वजह थी कि जब भी किसी किताब में कोई बात उसे बहुत अच्छी लगी, तो उसने वह हिस्सा उन भेड़ों को पढ़कर सुनाया था। एक गडरिये के अकेलेपन और घुमक्कड जीवन की खुशियॉं उनसे बॉटी थी। गॉंव की देहात से गुजरते हुए जो उसने देखा था, उस पर टीका टिप्पणी भी की थी।
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