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created Mar 12th 2020, 07:17 by jayant bhalavi


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ऐसी स्थिति में मैं अनुभव करता हूं कि आपातकाल की घोषणा की जाय और इस देश के जो बुद्धिमान लोग हैं, उनको लेकर एक सर्वदलीय सरकार स्थापित की जाए। हम यह अनुभव करते हैं कि जिस तरह का शासन इस समय चल रहा है, उससे देश की कोई भी समस्या हल होने वाली नहीं है बल्कि इस सरकार की गलतियों से समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्र की आन्तरिक सुरक्षा के विषय में जो बिल मंत्री महोदय ने प्रस्तुत किया है, उस पर अब तक जितने भी भाषण हुए हैं, उनको मैंने बहुत ध्यान से सुना है। माननीय सदस्यों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लपेट में बहुत सारी बातें कही हैं और हमारे दल की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम भी इसके औचित्य के सम्बन्ध में फिर से विचार करें। मैं जहां तक समझ पाया हूं हमारे गृहमंत्री जी को इस बिल को प्रस्तुत करने में कोई सुख नहीं हुआ बल्कि वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए उनको दुख हो रहा है। आज जब हम नागरिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वतंत्रता की बात करते हैं तो सब से पहले उसमें व्यक्तिगत सुरक्षा की बात करते हैं। प्रत्येक नागरिक इस राष्ट्र की अपनी सत्ता में रहकर सुरक्षित रहना चाहता है। हमने इस बात की सुरक्षा संविधान में दी है और हम यह आशा करते हैं कि राजनीतिक दलों में आपसी मतभेद होते हुए भी राजनीतिक मतभेद का आदर होना चाहिए। मतभेद होते हुए भी शान्ति और सुरक्षा बनी रहनी चाहिए। माननीय सदस्य पूछते हैं, ऐसी कौन सी असाधारण परिस्थिति गयी थी जिसके कारण आपको नज़रबन्दी बिल लाना पड़ा? मैं आपसे कहना चाहता हूं कि क्या ही अच्छा होता यदि नेहरू जी की उस बात को जो उन्होंने लोकतंत्र के सम्बन्ध बहुत वर्षो पहले कही थी, आज भी स्मरण रखते। उन्होंने एक बार कहा थी कि लोकतंत्र के संचालन और दायित्व निर्वाह में अगर किसी प्रधानमंत्री को बार-बार पीछे मुड़कर देखना पड़े की कोई छुरा तो नहीं भोंक रहा है, यह कोई अच्छी बात नहीं। यदि ऐसी परिस्थिति देश में पैदा हो जाये, साम्प्रदायिक दृष्टि से देश में विभिन्न स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हों, उनका सामना करते हुए यदि हम जनता को सुरक्षा दे सकें तो फिर किसी बिल की आवश्यकता नहीं है।  
 
 
 

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