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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 27th 2020, 04:04 by Jyotishrivatri
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एक महान विद्वान थे जो अपनी करुणता एवम परोपकार के लिए माने जाते थे। वे एक जाने माने कॉलेज प्रोफेसर थे और शिक्षा का दान देने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। जरुरत पढ़ने पर वे शिक्षा के लिए छात्रों को धन से भी मदद करते थे। समय निकलता गया कई छात्रों को उन्होंने पढ़ाया बड़ी-बड़ी पोस्ट पर बैठाया कई उन्हें याद रखते कई भूल जाते कई मिलने आते कई केवल ख्यालों में ही उनसे रूबरू हो जाते। एक दिन एक व्यक्ति उनके पास आया वे उसे पहचान नहीं पाए उसने कहा मास्टर जी आप मुझे भूल गये होंगे क्योंकि आपके जीवन में मेरे जैसे कई थे पर शायद मेरे जैसों के लिए केवल आप यह सुनकर मास्टर जी मुस्कुरायें उन्होने उसे गले लगाया और अपने समीप बैठाया तब उस शिष्य ने मास्टर जी से कहा मै जो कहने एवम करने आया हूं कृपया खुशी-खुशी मुझे वो करने की इजाजत दे और ऐसा कहकर वो हाथ जोड़ खड़ा हो गया। तब मास्टर जी ने खुल कर मन की बात कहने को कहा तब उस शिष्य ने कुछ रूपयों की गड्डी निकाल कर मास्टर जी के हाथ में रखी और कहा आपको याद नहीं होगा पर आपके कारण ही मैंने अपनी बी. ए. एल एल बी की पढ़ाई पूरी की। अगर आप नहीं होते तो मैं भी पिता की तरह स्टेशन पर झाडू मरता। लेकिन आपके परोपकार के कारण आज मैं इसी शहर का बेरिस्टर नियुक्त किया गया हूं। और इस खातिर मैं आज आपके उपकार के बदले कुछ करने की इच्छा हेतू यह धन राशि आपको दे रहा हूं।
तब मास्टर जी ने उसे समीप बुलाया और बैठकर कहा बेटा तुम मेरे द्वारा किये महान कार्य को एक सहुकारिता में बदल रहे हो। अगर तुम कुछ करना ही चाहते हो तो इस परम्परा को आगे बढ़ाओं मैने तुम्हारी मदद की तुम किसी अन्य की करों और उसे भी यही शिक्षा दो। यह सुनकर बेरिस्टर उनके चरणों में गिरा और बोला मास्टर जी इतना पढ़ने के बाद भी मुझे जो ज्ञान नही मिला था वो आज आपसे मिला मैं जरूर इस परम्परा को आगे बढ़ाऊंगा और मेरे जैसे किसी अन्य का भविष्य बनाऊंगा। किसी सच्चे परोपकारी के उपकार का मौल लगाना उसके उपकार की तौहीन करने के बराबर होता है। लेकिन इसके बदले उससे सीख लेकर इस परम्परा को बढ़ाना एक सच्ची श्रद्धा है। अगर यह परम्परा आगे बढ़ती जाए तो देश और दुनियां की तस्वीर ही बदल जायेगी और संसार में सदाचारी एवम परोपकारी बढ़ जाये। आज के समय में ऐसी कल्पना व्यर्थ है लेकिन इस तरह के प्रसंग जीवन को सही दिशा देते है। ऐसा नहीं है कि परोपकारी नहीं है। अगर ऐसी शिक्षा किन्ही गुरु द्वारा शिष्यों को मिले तब यह कल्पना चरितार्थ हो जाये।
तब मास्टर जी ने उसे समीप बुलाया और बैठकर कहा बेटा तुम मेरे द्वारा किये महान कार्य को एक सहुकारिता में बदल रहे हो। अगर तुम कुछ करना ही चाहते हो तो इस परम्परा को आगे बढ़ाओं मैने तुम्हारी मदद की तुम किसी अन्य की करों और उसे भी यही शिक्षा दो। यह सुनकर बेरिस्टर उनके चरणों में गिरा और बोला मास्टर जी इतना पढ़ने के बाद भी मुझे जो ज्ञान नही मिला था वो आज आपसे मिला मैं जरूर इस परम्परा को आगे बढ़ाऊंगा और मेरे जैसे किसी अन्य का भविष्य बनाऊंगा। किसी सच्चे परोपकारी के उपकार का मौल लगाना उसके उपकार की तौहीन करने के बराबर होता है। लेकिन इसके बदले उससे सीख लेकर इस परम्परा को बढ़ाना एक सच्ची श्रद्धा है। अगर यह परम्परा आगे बढ़ती जाए तो देश और दुनियां की तस्वीर ही बदल जायेगी और संसार में सदाचारी एवम परोपकारी बढ़ जाये। आज के समय में ऐसी कल्पना व्यर्थ है लेकिन इस तरह के प्रसंग जीवन को सही दिशा देते है। ऐसा नहीं है कि परोपकारी नहीं है। अगर ऐसी शिक्षा किन्ही गुरु द्वारा शिष्यों को मिले तब यह कल्पना चरितार्थ हो जाये।
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