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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 27th 2020, 02:31 by renukamasram
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दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध और समर्थन में प्रदर्शनों का सिलसिला खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। रविवार को भड़की हिंसा मंगलवार को भी नहीं थमी। केंद्र सरकार हालात पर कड़ी नजर रखने का दावा कर रही है तो दिल्ली सरकार प्रदर्शनकारियों से शांति की गुहार लगा रही हैं, फिर भी राजधानी के हालात में सुधार नजर नहीं आते। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में धारा 144 लागू है, मेट्रो स्टेशनों के साथ स्कूल-कॉलेज बंद हैं और सड़कों पर भारी सुरक्षा बल उतारे जाने के बावजूद उपद्रवी हिंसा पर उतारू हैं। लोकतंत्र अगर विरोध प्रदर्शन का अधिकार देता है तो यह अपेक्षा भी रखता है कि इसकी आड़ में किसी भी तरह की हिंसा का रास्ता नहीं खोला जाएगा। दिल्ली में भड़की हिंसा चिंताजनक भी है और निंदनीय भी, जिसने सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के साथ कुछ बेकसूरों का जीवन छीना और महानगर का जनजीवन ठप कर दिया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन अगर एक तरह से साम्प्रदायिक उन्माद में तब्दील हो रहे हैं तो इसके लिए केंद्र और दिल्ली सरकार का ढुलमुल रवैया भी कुछ हद तक जिम्मेदार है। शाहीन बाग प्रदर्शन शुरू हुए 70 से ज्यादा दिन बीत चुके है, इस बीच मसले को बातचीत के जरिए सुलझाने की कोई ठोस पहल न केंद्र ने की, न दिल्ली सरकार ने। दोनों सरकारों से तटस्थता तोड़ने की पहल की दरकार थी, ताकि हल के रास्ते खोजे जाते। इनके मुकाबले सुप्रीम कोर्ट जरूर सजग नजर आया, जब हफ्तेभर पहले उसने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किए थे।
शाहीन बाग से सीएए और एनआरसी के विरोध में जारी आंदोलन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- चिंता की बात यह है कि यह प्रदर्शन सड़क पर किया जा रहा हे। किसी भी मामले में सड़क को ब्लॉक नहीं किया जा सकता। अफसोस की बात है कि सड़क जाम होने पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता केंद्र और दिल्ली सरकार की चिंता नहीं बन पाई। आंदोलनकारियों को बातचीत की मेज पर लाया जा सकता था या उन्हें शाहीन बाग से अन्यत्र स्थानांतरित होने के लिए मनाया जा सकता था। इसके बजाय सियासत के मोर्चे खुलते गए और राजनीतिक पार्टियों में तीखे शब्दबाण का खेल शुरू हो गया। आंदोलनकारियों के खिलाफ गैर जिम्मेदाराना बयानों ने भी आग में घी का काम किया। राजधानी में हालात बिगड़ने के बाद अब केंद्र और दिल्ली सरकार जो भागदौड़ कर रही हैं, उससे आधा फीसदी भी कुछ दिनों पहले कर ली जाती तो यह नौबत नहीं आती। हिंसा को सख्ती से कुचलने के साथ सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार समस्या के हल के ठोस कदम जितनी जल्दी उठाएगी, दिल्ली के साथ देश उतनी जल्दी चैन की सांस लेगा।
शाहीन बाग से सीएए और एनआरसी के विरोध में जारी आंदोलन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- चिंता की बात यह है कि यह प्रदर्शन सड़क पर किया जा रहा हे। किसी भी मामले में सड़क को ब्लॉक नहीं किया जा सकता। अफसोस की बात है कि सड़क जाम होने पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता केंद्र और दिल्ली सरकार की चिंता नहीं बन पाई। आंदोलनकारियों को बातचीत की मेज पर लाया जा सकता था या उन्हें शाहीन बाग से अन्यत्र स्थानांतरित होने के लिए मनाया जा सकता था। इसके बजाय सियासत के मोर्चे खुलते गए और राजनीतिक पार्टियों में तीखे शब्दबाण का खेल शुरू हो गया। आंदोलनकारियों के खिलाफ गैर जिम्मेदाराना बयानों ने भी आग में घी का काम किया। राजधानी में हालात बिगड़ने के बाद अब केंद्र और दिल्ली सरकार जो भागदौड़ कर रही हैं, उससे आधा फीसदी भी कुछ दिनों पहले कर ली जाती तो यह नौबत नहीं आती। हिंसा को सख्ती से कुचलने के साथ सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार समस्या के हल के ठोस कदम जितनी जल्दी उठाएगी, दिल्ली के साथ देश उतनी जल्दी चैन की सांस लेगा।
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