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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Feb 25th 2020, 11:58 by akash khare
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सरकार ऐसा कानून बनाने की तैयारी में है जिसमें विशिष्ट पहचान सुनिश्चित करने वाले आधार क्रमांक को मतदान पहचान-पत्र से जोड़ने का प्रावधान होगा। इस तरह के फैसले के पीछे की सरकार की मंशा समझाना आसान है। तमाम सरकारी कार्यक्रमों के लाभार्थियों का दोहराव रोकने के लिए आधार डेटा का इस्तेमाल किया गया है। ऐसी स्थिति में अफसरशाही आधार क्रमांक और मतदान पहचान-पत्र जोड़ने को सरकारी कार्यक्रमों और मतदान के लिए योग्य भारतीयों की एक संपूर्ण सूची तैयार करने की दिशा में सिर्फ अगले कदम के तौर पर देख रही है। लेकिन आधार और मतदाता पहचान-पत्र जोड़ने के कई ऐसे नतीजे भी होंगे जिनका ध्यान रखने की जरूर है। निश्चित रूप से आधार के उपयोग से एक दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में जाने वाले मतदाताओं को राहत मिल सकती है। इससे उन लोगों को फायदा होगा जिन्हें आर्थिक एवं अन्य कारणों से अपना गृह-क्षेत्र छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ता है। आधार से मतदाता पहचान-पत्र जुड़े होने से वे नई जगह पर भी मतदान आसानी से कर पाएंगे।
हालांकि यहां पर यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि सरकार एक ऐसी चीज को क्यों अनिवार्य बनाना चाहती है जिसे मौलिक रूप से पूरक माना गया था। अगर आधार की संकल्पना एक ऐसे तरीके के तौर पर की गई है जिसके माध्यम से कोई दूसरा पहचान-पत्र नहीं रखने वाला व्यक्ति भी निर्वाचन अधिकारियों के समक्ष अपनी पहचान साबित कर सकता है तो फिर इसे गलत नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अगर इसे एक संभावित मतदाता की राह में खड़े होने वाले एक और अवरोध के तौर पर देखा जा रहा है तो फिर अलग बात है। उस स्थिति में मताधिकार का दायरा व्यापक करने का मकसद ही पूरा नहीं होता है। यहां यह प्रश्न केंद्र में आ जाता है कि सरकार नागरिकों के आंकड़े तक क्यों और कैसे पहुंच रख सकती है।
हालांकि यहां पर यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि सरकार एक ऐसी चीज को क्यों अनिवार्य बनाना चाहती है जिसे मौलिक रूप से पूरक माना गया था। अगर आधार की संकल्पना एक ऐसे तरीके के तौर पर की गई है जिसके माध्यम से कोई दूसरा पहचान-पत्र नहीं रखने वाला व्यक्ति भी निर्वाचन अधिकारियों के समक्ष अपनी पहचान साबित कर सकता है तो फिर इसे गलत नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अगर इसे एक संभावित मतदाता की राह में खड़े होने वाले एक और अवरोध के तौर पर देखा जा रहा है तो फिर अलग बात है। उस स्थिति में मताधिकार का दायरा व्यापक करने का मकसद ही पूरा नहीं होता है। यहां यह प्रश्न केंद्र में आ जाता है कि सरकार नागरिकों के आंकड़े तक क्यों और कैसे पहुंच रख सकती है।
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