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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 25th 2020, 02:46 by Shankar D.
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राजस्थान के बांसवाड़ा में एक कंपनी की ओर से भेजी गई कैल्शियम और विटामिन डी-3 की कॉम्बिनेशन वाली दवा में विटामिन ही नहीं मिला। वहीं, कश्मीर में भी खांसी की दवा पीकर नौ बच्चों की मौत हो गई। जांच में सामने आया कि दवा में जहर के गुण पाए गए हैं। दोनों ही दवा हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी की थीं। जिन दवाओं को जिंदगी बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाना है, वही जान लेने की वजह बन रही हैं। देश में मुनाफा कमाने के लिए स्तरहीन दवाओं का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है। यहां तक कि ऐसी दवाएं सरकारी खरीदी में भी खप रही हैं। भले ही सरकार दावा करे कि स्तरहीन दवाओं का कारोबार सिर्फ तीन फीसदी है, पर ऐसोचैम की रिपोर्ट कहती है कि एक चौथाई दवाएं अमानक स्तर की बिक रही हैं। एक अमरीकी संस्था की रिपोर्ट कहती है कि सबसे ज्यादा अमानक दवाएं गरीब देशों में बिक रही है। इनमें भारत भी एक है। एक बात स्पष्ट है कि भारत में स्तरहीन दवाओं का बड़ा कारोबार विकसित हो चुका है। तमाम कानूनों के बावजूद इसका फलना-फूलना आश्चर्यजनक है। इसमें ऊंचे पदों पर आसीन लोगों की भूमिका संदेह में है।
देश में दवाओं के कारोबार का गणित समझना चाहिए। यहां पर एक कॉम्बिनेशन की दवा हर कंपनी में अलग-अलग दाम पर मिलती है। इनके दामों मेें कई गुना का अंतर है। जब नई दवाओं की अनुमति ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से मिलती है तो एक ही दवा के दाम अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? सवाल है कि क्या ड्रग कंट्रोलर देश में दवा कंपनियों को मुनाफाखोरी का फायदा दे रहे हैं या फिर वाकई में हर दवा कंपनी की दवा का स्तर अलग-अलग होता है। गुणवत्ता के आधार पर दाम तय होते हैं तो देश मे फिर गुणवत्ताहीन दवाओं को बेचने की अनुमति क्यों दी जा रही है? क्यों नहीं, देश में दवा के दामों से लेकर गुणवत्ता में एकरूपता होनी चाहिए? सवाल इसलिए भी लाजिमी है कि देश में 25 फीसदी से ज्यादा स्तरहीन दवाओं का कारोबार हो रहा है, जो हमारी सेहत को प्रभावित करने वाला है। हाल ही मध्यप्रदेश सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में दावा किया था कि वह आने वाले दिनों में स्तरहीन दवाओं के खिलाफ मुहिम चलाएगी, लेकिन यह सिरे ही नहीं चढ़ पाई। कमोबेश ऐसी ही स्थिति अन्य राज्यों की भी है। दरअसल, अधिकांश राज्यों में दवा कारोबार में ऐसा तंत्र विकसित हो रहा है, जो मुनाफे के लिए स्तरहीन दवाओं के जरिए मानव स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है। ज्यादातर राज्य इसे रोकने में विफल रहे है। स्थिति इतनी लचर है कि दवाओं पर निगरानी के लिए अधिकतर राज्यों के पास पर्याप्त सरकारी अमला तक नहीं है। जरूरत है, केन्द्र और राज्यों को अमानक या स्तरहीन दवाओं पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कदम उठाने की। इसके लिए कानून को सख्त बनाने के साथ ही उनका सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा।
देश में दवाओं के कारोबार का गणित समझना चाहिए। यहां पर एक कॉम्बिनेशन की दवा हर कंपनी में अलग-अलग दाम पर मिलती है। इनके दामों मेें कई गुना का अंतर है। जब नई दवाओं की अनुमति ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से मिलती है तो एक ही दवा के दाम अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? सवाल है कि क्या ड्रग कंट्रोलर देश में दवा कंपनियों को मुनाफाखोरी का फायदा दे रहे हैं या फिर वाकई में हर दवा कंपनी की दवा का स्तर अलग-अलग होता है। गुणवत्ता के आधार पर दाम तय होते हैं तो देश मे फिर गुणवत्ताहीन दवाओं को बेचने की अनुमति क्यों दी जा रही है? क्यों नहीं, देश में दवा के दामों से लेकर गुणवत्ता में एकरूपता होनी चाहिए? सवाल इसलिए भी लाजिमी है कि देश में 25 फीसदी से ज्यादा स्तरहीन दवाओं का कारोबार हो रहा है, जो हमारी सेहत को प्रभावित करने वाला है। हाल ही मध्यप्रदेश सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में दावा किया था कि वह आने वाले दिनों में स्तरहीन दवाओं के खिलाफ मुहिम चलाएगी, लेकिन यह सिरे ही नहीं चढ़ पाई। कमोबेश ऐसी ही स्थिति अन्य राज्यों की भी है। दरअसल, अधिकांश राज्यों में दवा कारोबार में ऐसा तंत्र विकसित हो रहा है, जो मुनाफे के लिए स्तरहीन दवाओं के जरिए मानव स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है। ज्यादातर राज्य इसे रोकने में विफल रहे है। स्थिति इतनी लचर है कि दवाओं पर निगरानी के लिए अधिकतर राज्यों के पास पर्याप्त सरकारी अमला तक नहीं है। जरूरत है, केन्द्र और राज्यों को अमानक या स्तरहीन दवाओं पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कदम उठाने की। इसके लिए कानून को सख्त बनाने के साथ ही उनका सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा।
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