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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 24th 2020, 03:26 by Sai computer typing
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दिन ब दिन रसातल की ओर जा रही राजनीति के दौर में थोड़ा हौसला और हिम्मत बढ़ाने वाली खबर राजस्थान के बाड़मेर से आई है। इस खबर का सार यह है कि जन प्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद भी संबंधित व्यक्तियों ने अपना मूल पेशा नहीं छोड़ा। ये सारे लोग चाहे वह कैलाश आचार्य, लक्ष्मण जीनगर या मगराज खत्री कोई भी हों, सब राजस्थान में हाल ही हुए स्थानीय निकाय चुनावों में बाड़मेर नगर परिषद के सदस्य चुने गए हैं। पार्षद निर्वाचित होने के बावजूद उनके पैर कम से कम अभी तो जमीन पर ही है। कोई सब्जी बेच रहा है तो कोई अखबार। एक तो अपनी नई जिम्मेदारी के साथ, पानी-पुरी बेचने के अपने पुराने काम से पहले की ही तरह जुड़ा है। भले ही ये सारे लोग लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान के लिए चुने गए हों, लेकिन उनका संदेश लोकतंत्र की सबसे ऊंची सीढ़ी संसद तक जाता है। संदेश यही है कि अपनी जड़ो से जुड़े रहो। यह अफसोस का ही विषय है कि हमारे लोकतंत्र की उम्र तो साल दर साल बढ रही है लेकिन उसकी गुणवत्ता दिन पर दिन हल्की होती जा रही है। तकलीफ इस बात की भी कम नहीं है कि हम सच स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। हम एक आभासी वातावरण में जीना चाहते है।
आज हमारा लोकतंत्र और उसके आधार तमाम राजनीतिक दल क्या कर रहे है? क्या ऐसा नही है कि वे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के नित नए नारे गढ़ कर अपने आप को और देश की जनता को धोखा दे रहे है। क्या हमारे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं में, चाहे वे पक्ष के हों या विपक्ष के, इतना साहस है कि वे पहले-दूसरे चुनाव लड़ या देख चुके लोगों के साथ बैठकर आज के हमारे लोकतंत्र की तुलना करें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो हमें अपना और अपने लोकतंत्र का असल चेहरा नजर आएगा। तब दिखेगा कि हम कितने आगे बढे या पीछे जा रहे है। पीछे जाकर देखने पर ही हमें नजर आएगा कि शुरूआती आम चुनावों में चुने गए हमारे प्रतिनिधि कैसे थे और आज के हमारे जनप्रतिनिधि कैसे है, तब उनकी क्या योग्यता थी और वे कितना काम करते थे और आज स्थिति क्या है,उस वक्त वे कितना वेतन लेते थे और आज उनके वेतन-भत्ते क्या है। तुलना पर ही दिखेगा कि तब हमारे नुमाइंदे चुने जाने के बाद जनता के बीच रहने में, अपने मूल काम-धंधे को करते रहने में अपना सम्मान समझते थे या फिर आज की तरह सुरक्षा घेरे में अपना नया आभामंडल तैयार कर लेते थे। तभी हमें यह पता चलेगा कि आज हमारे जनप्रतिनिधि राजनीति के माध्यम से सेवा कर रहे है या कि आज राजनीति भी व्यवसाय बन गई है।
आज हमारा लोकतंत्र और उसके आधार तमाम राजनीतिक दल क्या कर रहे है? क्या ऐसा नही है कि वे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के नित नए नारे गढ़ कर अपने आप को और देश की जनता को धोखा दे रहे है। क्या हमारे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं में, चाहे वे पक्ष के हों या विपक्ष के, इतना साहस है कि वे पहले-दूसरे चुनाव लड़ या देख चुके लोगों के साथ बैठकर आज के हमारे लोकतंत्र की तुलना करें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो हमें अपना और अपने लोकतंत्र का असल चेहरा नजर आएगा। तब दिखेगा कि हम कितने आगे बढे या पीछे जा रहे है। पीछे जाकर देखने पर ही हमें नजर आएगा कि शुरूआती आम चुनावों में चुने गए हमारे प्रतिनिधि कैसे थे और आज के हमारे जनप्रतिनिधि कैसे है, तब उनकी क्या योग्यता थी और वे कितना काम करते थे और आज स्थिति क्या है,उस वक्त वे कितना वेतन लेते थे और आज उनके वेतन-भत्ते क्या है। तुलना पर ही दिखेगा कि तब हमारे नुमाइंदे चुने जाने के बाद जनता के बीच रहने में, अपने मूल काम-धंधे को करते रहने में अपना सम्मान समझते थे या फिर आज की तरह सुरक्षा घेरे में अपना नया आभामंडल तैयार कर लेते थे। तभी हमें यह पता चलेगा कि आज हमारे जनप्रतिनिधि राजनीति के माध्यम से सेवा कर रहे है या कि आज राजनीति भी व्यवसाय बन गई है।
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