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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Feb 22nd 2020, 07:34 by ddayal2004


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देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में महिला अधिकारों और समानता को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्‍यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्‍तोगी के पीठ ने कहा कि अगर कोई महिला अफसर स्‍थायी कमीशन चाहती है तो उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता, भले उसकी नौकरी चौदह साल से अधिक हो गई हो। अदालत ने स्‍पष्‍ट निर्देश दिया कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्‍थायी कमीशन दिया जाए, जो यह विकल्‍प चुनना चाहती हैं। महिलाओं को शारीरिक आधार पर स्‍थायी कमीशन देना संवैधानिक मूल्‍यों के खिलाफ है। अदालत ने इसके लिए मार्च, 2019 के बाद सेना से जुड़ने की सरकारी शर्त भी हटा दी। अदालत ने स्‍थायी कमीशन देने के हाईकोर्ट के आदेश पर एक दशक तक अमल करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उच्‍चतम न्‍यायालय के फैसले को लागू नहीं किया। अदालत ने केंद्र सरकार की इन दलीलों कि सेना में ज्‍यादातर जवान ग्रामीण पृष्‍ठभूमि से आते हैं और महिला अधिकारियों से फौजी हुक्‍म लेना उनके लिए सहज नहीं होगा महिलाओं की शारीरिक स्थिति और पारिवारिक दायित्‍व जैसी बहुत-सी बातें उन्‍हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं, को स्‍पष्‍ट तौर पर खारिज करते हुए कहा कि सरकार अपने नजरिए और सोच में बदलाव लाये। उसकी यह सोच अतार्किक और समानता के अधिकार के खिलाफ है। महिला अफसरों को स्‍थायी कमीशन देने से इंकार रूढि़वादी पूर्वाग्रह का उदाहरण है।  
    महिला अधिकारी अपने पराक्रम में कहीं से भी कम नहीं हैं। सच बात तो यह है कि केंद्र सरकार ने महिलाओं को सेना में स्‍थायी कमीशन देने की अदालत ने जो दलीलें पेश की थीं, वे सिर्फ दकियानूस और प्रतिगामी थीं, बल्कि सेना में महिलाओं के असाधारण प्रदर्शन के रिकॉर्ड से भी मेल नहीं खातीं। अदालत ने अपने इस अहम फैसले में बाकायदा देश की उन ग्‍यारह महिला सैन्‍य अधिकारियों जिनमें कैप्‍टन तानिया शेरगिल, ले. कर्नल सोफिया कुरैशी और मेजर मधुमिता शामिल हैं।

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