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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Feb 22nd 2020, 07:07 by Buddha academy
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नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में भाजपा नेताओं का कहना है कि यह किसी से उनकी नागरिकता छीनने के लिए नहीं लाया गया है, और प्रदर्शनकारियों को गलत जानकारी देकर भ्रमित किया जा रहा है। इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि घाघ नेता उन हजारों छात्रों और नागरिकों की मांगों को समझ नहीं पा रहे हैं। उनका संदेश, पोस्टर पर लिखे नारे, गीत, कला और भित्तिचित्रों से स्पष्ट सुनाई दे रहा है कि हम भारत के लोग, धार्मिक पहचान और नागरिकता के सम्मिश्रण को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम धर्मनिरपेक्षता और समानता को कमजोर नहीं पड़ने देंगे, संविधान में किए जाने वाले गैर-जिम्मेदाराना संशोधन को स्वीकार नहीं करेंगे, और हमें विभाजित करने के घातक प्रयासों को सफल नहीं होने देंगे।
जरा राजनीतिक चमत्कार तो देखिए। पिछले साढ़े पांच सालों में सरकार और लोगों के बीच के जुड़ाव की शर्तें बदल गई हैं। भाजपा सरकार ने अपनी आलोचना को बर्दाश्त नहीं करने का जैसे प्रण ले लिया है। हमारे युवा भी गली-गली में इस तथ्य को गाते फिर रहे हैं कि वे राष्ट्र की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का उल्लंघन करने वाली किसी भी नीति को बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे शासकों से खुलकर कहना चाह रहे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम की अग्नि में तपे संवैधानिक सिद्धांतों के साथ छेड़छाड न करें। यही हमारी विरासत और संस्कृति है।
यही कारण है कि दिसंबर के मध्य में हजारों छात्र-छात्राएं विरोध में उठ खड़े हुए हैं। वे समय समाज के उस इतिहास से भी शायद ही परिचित हैं, जिसने सत्ता को हिला दिया था। और राज्यों को नष्ट कर दिया था। सिविल सोसाइटी या सभ्य समाज की अवधारणा आदर्शवादी है। सामाजिक संगठन कई पहलुओं को सफल बनाते हैं। इन पहलुओं में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता विकसित करने, लोकप्रिय संस्कृति को विकसित करने, जरूरतमंद बच्चों का समर्थन करने, आसपास की गतिविधियों को व्यवस्थित करने और मानवाधिकारों की रक्षा करने तक कुछ भी हो सकते हैं।
इन सबसे ऊपर अवधारणा यह मानती है कि लोकतांत्रिक राज्य भी अपूर्ण हैं। 20वीं शती के पिछले कुछ दशकों में नागरिक सक्रियता सूचित जनमत और सामाजिक संघों के चलते सत्तावादी शासन को काबू में रखा जा सकता है। इस अवधारणा ने दुनिया भर में हजारों लोगों को खड़े होने के लिये प्रेरित किया है। 21वीं शती के प्रथम दशक में ही नेपाल से लेकर लीबिया तक सत्ता-विरोधी विशाल जनसमूह ने राजशाही और अत्याचारों को समाप्त करने की मांग के लिए क्रांति की। सिविल सोसायटी का उद्देश्य सत्ता पर अधिकार करना नहीं होता है। यह काम तो राजनैतिक दलों के लिए ही छोड़ दिया जाता है। ऐसे समाज का उदय ही राजनीतिक दलों के प्रति मोहभंग के कारण हुआ है। ये तो समाज का विवेक हैं। इनके विरोध और प्रदर्शन के फलस्वरूप अनेक सत्ता धराशाही हो चुकी हैं।
जरा राजनीतिक चमत्कार तो देखिए। पिछले साढ़े पांच सालों में सरकार और लोगों के बीच के जुड़ाव की शर्तें बदल गई हैं। भाजपा सरकार ने अपनी आलोचना को बर्दाश्त नहीं करने का जैसे प्रण ले लिया है। हमारे युवा भी गली-गली में इस तथ्य को गाते फिर रहे हैं कि वे राष्ट्र की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का उल्लंघन करने वाली किसी भी नीति को बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे शासकों से खुलकर कहना चाह रहे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम की अग्नि में तपे संवैधानिक सिद्धांतों के साथ छेड़छाड न करें। यही हमारी विरासत और संस्कृति है।
यही कारण है कि दिसंबर के मध्य में हजारों छात्र-छात्राएं विरोध में उठ खड़े हुए हैं। वे समय समाज के उस इतिहास से भी शायद ही परिचित हैं, जिसने सत्ता को हिला दिया था। और राज्यों को नष्ट कर दिया था। सिविल सोसाइटी या सभ्य समाज की अवधारणा आदर्शवादी है। सामाजिक संगठन कई पहलुओं को सफल बनाते हैं। इन पहलुओं में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता विकसित करने, लोकप्रिय संस्कृति को विकसित करने, जरूरतमंद बच्चों का समर्थन करने, आसपास की गतिविधियों को व्यवस्थित करने और मानवाधिकारों की रक्षा करने तक कुछ भी हो सकते हैं।
इन सबसे ऊपर अवधारणा यह मानती है कि लोकतांत्रिक राज्य भी अपूर्ण हैं। 20वीं शती के पिछले कुछ दशकों में नागरिक सक्रियता सूचित जनमत और सामाजिक संघों के चलते सत्तावादी शासन को काबू में रखा जा सकता है। इस अवधारणा ने दुनिया भर में हजारों लोगों को खड़े होने के लिये प्रेरित किया है। 21वीं शती के प्रथम दशक में ही नेपाल से लेकर लीबिया तक सत्ता-विरोधी विशाल जनसमूह ने राजशाही और अत्याचारों को समाप्त करने की मांग के लिए क्रांति की। सिविल सोसायटी का उद्देश्य सत्ता पर अधिकार करना नहीं होता है। यह काम तो राजनैतिक दलों के लिए ही छोड़ दिया जाता है। ऐसे समाज का उदय ही राजनीतिक दलों के प्रति मोहभंग के कारण हुआ है। ये तो समाज का विवेक हैं। इनके विरोध और प्रदर्शन के फलस्वरूप अनेक सत्ता धराशाही हो चुकी हैं।
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