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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤सती प्रथा✤|•༻ {संचालक-बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}
created Feb 8th 2020, 07:41 by ashishgupta1232338
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सती प्रथा कुछ पुरातन भारतीय हिन्दू समुदायों में प्रचलित एक ऐसी धार्मिक प्रथा थी, जिसमें किसी पुरुष की मृत्योपरांत उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में स्वयमेव प्रविष्ट होकर आत्मत्याग कर लेती थी। 1829 में अंग्रेजों द्वारा भारत में इसे गैरकानूनी घोषित किये जाने के बाद से यह प्रथा प्राय: समाप्त हो गई थी। वास्तव में सती होने के इतिहास के बारे में पूर्ण सत्यात्मक तथ्य नहीं मिले हैं। यह वास्तव में राजाओं की रानियों अथवा उस क्षेत्र की महिलाओं का इस्लामिक आक्रमणकारियों के आक्रमण के समय यदि उनके रक्षकों की हार हो जाती तो अपने आत्मसम्मान को बचने के लिए स्वयं दाह कर लेती इसका सबसे बड़ा उदाहरण चित्तोड़ की महारानी पद्मनी का आता है।
इस प्रथा का अंत राजाराम मोहन राय ने अंग्रेज के गवर्नर लार्ड विलियम बैंटिक की सहायता से की। इस प्रथा को इसका यह नाम देवी सती के नाम से मिला है जिन्हें दक्षायनी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति महादेव शिव के तिरस्कार से व्यथित होकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर दिया था। सती शब्द को अक्सर अकेले या फिर सावित्री शब्द के साथ जोड़कर किसी पवित्र महिला की व्याख्या करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
प्राचीन काल में सती प्रथा का एक यह भी कारण रहा था। इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा जब पुरुषों की हत्या कर दी जाती थी, उसके बाद उनकी पत्नियां अपनी अस्मिता व आत्मसम्मान को महत्वपूर्ण समझकर स्वयमेव अपने पति की चिता के साथ आत्महत्याग करने पर विवश हो जाती थी। कालांतर में महिलाओं की इस स्वैच्छिक विवशता का अपभ्रंश होते-होते एक सामाजिक रीति जैसी बन गयी, जिसे सती प्रथा के नाम से जाना जाने लगा।
ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरूद्ध समाज को जागरूक किया। जिसके फलस्वरूप इस आंदोलन को बल मिला और तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को सती प्रथा को रोकने के लिये कानून बनाने पर विवश होना पड़ा था। अंतत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अंत हो गया। हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान ने स्वयं 12 नवंबर, 1876 को एक चेतावनी घोषणा जारी किया और कहा, अब यह सूचित किया गया है कि यदि भविष्य में कोई भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करता है, तो उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा और दंडित किया जायेगा।
इस प्रथा का अंत राजाराम मोहन राय ने अंग्रेज के गवर्नर लार्ड विलियम बैंटिक की सहायता से की। इस प्रथा को इसका यह नाम देवी सती के नाम से मिला है जिन्हें दक्षायनी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति महादेव शिव के तिरस्कार से व्यथित होकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर दिया था। सती शब्द को अक्सर अकेले या फिर सावित्री शब्द के साथ जोड़कर किसी पवित्र महिला की व्याख्या करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
प्राचीन काल में सती प्रथा का एक यह भी कारण रहा था। इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा जब पुरुषों की हत्या कर दी जाती थी, उसके बाद उनकी पत्नियां अपनी अस्मिता व आत्मसम्मान को महत्वपूर्ण समझकर स्वयमेव अपने पति की चिता के साथ आत्महत्याग करने पर विवश हो जाती थी। कालांतर में महिलाओं की इस स्वैच्छिक विवशता का अपभ्रंश होते-होते एक सामाजिक रीति जैसी बन गयी, जिसे सती प्रथा के नाम से जाना जाने लगा।
ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरूद्ध समाज को जागरूक किया। जिसके फलस्वरूप इस आंदोलन को बल मिला और तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को सती प्रथा को रोकने के लिये कानून बनाने पर विवश होना पड़ा था। अंतत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अंत हो गया। हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान ने स्वयं 12 नवंबर, 1876 को एक चेतावनी घोषणा जारी किया और कहा, अब यह सूचित किया गया है कि यदि भविष्य में कोई भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करता है, तो उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा और दंडित किया जायेगा।
