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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Feb 7th 2020, 13:59 by Buddha academy
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नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिक जनसंख्या रजिस्टर के विरोध में चल रहा देशव्यापी प्रदर्शन, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के लिए एक आह्यन, और सत्ता वर्ग द्वारा लोकतांत्रिक संरचनाओं का किये जा रहे विनाश के लिए रेड अलर्ट है। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में निर्दयतापूर्ण हमलों के बावजूद, छात्रों ने अपना मैदान खड़ा कर लिया है और निडर होकर इस क्रूर हमले को अपनी चुनौती दी है। यह स्पष्ट है कि ऐसे हमले सरकार द्वारा प्रेरित रहे हैं। इस संदर्भ में वे सरकार के आरएसएस और एबीवीपी जैसे उसके विद्यार्थी संगठनों के आबादी का ध्रुविधारण करने और हिंसा के सहारे भय उत्पन्न करने के उसके एजेंडे को ही प्रचारित करते हैं। जिस राज्य में भी भाजपा का शासन है, वहां की पुलिस मौन दर्शक बनी हुई सशस्त्र भीड़ का साथ देती रही है।
जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने अहिंसक विरोध के द्वारा आशान्वित करने वाले संवैधानिक मूल्यों के ह्यास के प्रति चिंता जताई है। यह विडंबना है कि असंतोष को दूर करने के लिए उठाए नए सरकार के निरंकुश कदमों ने संविधान के प्रति लोगोें को जागरूक करने के साथ ही, बहुलवाद और धर्म निरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा हेतु तत्पर कर दिया है।
अंबेडकर की सामाजिक समानता की अवधारणा को ध्वस्त करने तथा गांधी की अहिंसा और सविनय अवज्ञा को खंडित करने के सभी प्रयत्नों के बावजूद, हमारे युवओं ने न्याय और संवैधानिक गारंटी को सुनिश्चित रखने के प्रयासों में ऊर्जा और संकल्प दिखाया है। पिछले छ: वर्षों में जो डर था, वह हिंसा के प्रचार और उस पर भारतीयों की बड़े पैमाने पर चुप्पी साधने का डर था। आज हम जो देख रहे हैं, वह इस चुप्पी के टूटने की शुरूआत है। जिस देश में हर तरह के संस्थान को खोखला किया जा रहा है, उस देश में प्रदर्शनों का होना ऐसी घटना है, जो बदलाव के कुचक्र की आशंका को खत्म कर देती है।
इन विरोध प्रदर्शनों ने अभिव्यक्ति पर लगी पाबंदी और सहायता को खत्म किया है। विभाजनकारी बयानबाजी और राज्य अनुमोदित पदोन्नत्ति वाली नीतियों की आलोचना और विरोध किया है। इन नौजवानों के असाधारण साहस को देखने और सराहने वाले लाखों लोगों के मन से भय की चादर उतरने लगी है। नि:संदेह असंतोष की कीमत महंगी पड़ी है। इसके परिणामस्वरूप शारीरिक हानि हुई है, और निर्दोष मारे गए हैं। लेकिन इसने बगावत के प्रवाह पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया है।
जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने अहिंसक विरोध के द्वारा आशान्वित करने वाले संवैधानिक मूल्यों के ह्यास के प्रति चिंता जताई है। यह विडंबना है कि असंतोष को दूर करने के लिए उठाए नए सरकार के निरंकुश कदमों ने संविधान के प्रति लोगोें को जागरूक करने के साथ ही, बहुलवाद और धर्म निरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा हेतु तत्पर कर दिया है।
अंबेडकर की सामाजिक समानता की अवधारणा को ध्वस्त करने तथा गांधी की अहिंसा और सविनय अवज्ञा को खंडित करने के सभी प्रयत्नों के बावजूद, हमारे युवओं ने न्याय और संवैधानिक गारंटी को सुनिश्चित रखने के प्रयासों में ऊर्जा और संकल्प दिखाया है। पिछले छ: वर्षों में जो डर था, वह हिंसा के प्रचार और उस पर भारतीयों की बड़े पैमाने पर चुप्पी साधने का डर था। आज हम जो देख रहे हैं, वह इस चुप्पी के टूटने की शुरूआत है। जिस देश में हर तरह के संस्थान को खोखला किया जा रहा है, उस देश में प्रदर्शनों का होना ऐसी घटना है, जो बदलाव के कुचक्र की आशंका को खत्म कर देती है।
इन विरोध प्रदर्शनों ने अभिव्यक्ति पर लगी पाबंदी और सहायता को खत्म किया है। विभाजनकारी बयानबाजी और राज्य अनुमोदित पदोन्नत्ति वाली नीतियों की आलोचना और विरोध किया है। इन नौजवानों के असाधारण साहस को देखने और सराहने वाले लाखों लोगों के मन से भय की चादर उतरने लगी है। नि:संदेह असंतोष की कीमत महंगी पड़ी है। इसके परिणामस्वरूप शारीरिक हानि हुई है, और निर्दोष मारे गए हैं। लेकिन इसने बगावत के प्रवाह पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया है।
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