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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रांरभ

created Sep 21st 2019, 03:35 by sachin bansod


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नैतिकता को नागरिकता का एवम् सामाजिकता का एक पक्ष माना जाता है। परन्‍तु वस्‍तुत: वह इतने उथले धरातल पर उपजती नहीं। सामाजिकता नैतिकता लोकहित के नाम पर कुछ भी कर गुजरने पर उतारू हो जाती है। उसे अपने मूल स्‍वरूप को भुला दने में देर नहीं लगती। देश और धर्म नाम पर लोगों ने ऐसे अन्‍याय अत्‍याचार किये है जिन्‍हें देखते हुए व्‍यक्तिगत रूप से उन्‍हें पशु या पिशाच कहा जा सकता है। यही बात नागरिक स्‍तर की नैतिकता के सम्‍बन्‍ध में भी है। वस्‍तुत: उसे शिष्‍टाचार कहना चाहिए। बड़े आदमियों के लिए बने खर्चीले स्‍कूलों में शिष्‍टाचार ही प्रधान रूप से सिखाया जाता है। इस प्रकार की व्‍यवहार कुशलता प्रशंसनीय तो है पर वह नैतिकता का स्‍थान नहीं ले सकती हो सकता है कि कोई व्‍यक्ति मधुर भाषी, विनम्र और शिष्‍टाचार परायण हो किन्‍तु भतर ही भीतर दुष्‍टता से भरा हो, दुरभि संधिया रच रहा हो। विक्रय कला में प्राय: इसी प्रकार की धूर्तता का पुट रहता है। भोले लोग शिष्‍ट को सज्‍जन भी मान बैठते है। उसका परामर्श मानकर अपनी जेब कटाते देखे जाते है।  
    नीति वस्‍तुत: भावनात्‍मक उत्‍कृष्‍टता है जिसे प्रेम शब्‍द से सम्‍बन्धित करना अधिक उपयुक्‍त होगा। आत्‍मीयता भरी संवेदना अन्‍तराल की विशेषता है। वह जहां होती है वहां स्‍नेह-सौजन्‍य भरी उदारता बरतने के लिए विवश करती है। प्रेमी स्‍वभाव का व्‍यक्ति किसी के साथ अनीति नहीं बरत सकता। उसे दूसरों का अहित सोचते या करते समय ऐसा लगता है मानों अपनी ही कुल्‍हाड़ी से अपना ही पैर काटने जैसा अनर्थ किया गया।  
 

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