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साँई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो0नं0 9098909565

created Sep 21st 2019, 03:30 by lucky shrivatri


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बीते सालों से तुलना करें तो हमें लगता है कि आज देश में महिलाओं के पास बेहतर जीवन जीने के मूल्‍य और बेहतर साधन तो हैं ही, इस वर्ग के लिए बेहतर कानून भी है। यों तो संविधान में ही महिलाओं को बराबरी का अधिकार हासिल हैं। इसी संविधान के दायरे में जो कानून बनते आए हैं वे भी महिलाओं को संरक्षण प्रदान करते हैं। चाहे वो श्रम कानून हो या फिर महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार के लिए किए गए कानूनी प्रावधान। देहज प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को संरक्षण के लिए भी ठोस कानून है तो कार्यस्‍थल पर महिलाओं को संरक्षण दिया गया है। घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून से लेकर जाने क्‍या-क्‍या दूसरे कानून बनते आए है। ताजा उदाहरण तीन तलाक को गैरकानूनी ठहराने वाले कानून का है। जब कानून को संसद से प‍ारित किया गया तो विरोध के स्‍वर भी भी उठे। विरोधियों ने इसे धर्म से जोड़ने तक की कोशिश की। लेकिन जो इससे प्रभावित थे उन्‍होंने सराहना की। समाज के हर तबके ने मुस्लिम महिलाओं को संरक्षण देने वाले इस कानून का स्‍वागत किया।     
महिलाओं की सुरक्षा उनके अधिकारों को लेकर हमारे देश में जिस तरह के कानून बने हैं उनको देखकर ऐसा लगता है जैसे समूचे देश में महिलाएं ने केवल सुरक्षित हैं, बल्कि उनको व्‍यापक अधिकार भी हासिल हैं। इन सबके बावजूद जब महिला उत्‍पीड़न के मामले सामने आते हैं तो हर कोई यह सोचने को मजबूर होता है कि यदि कानून अपना काम कर रहा तो महिलाएं खुद को असुरक्षित क्‍यों महसूस कर रहीं हैं। इस सवाल का जवाब भी नया नहीं हैं। सिर्फ दोहराया ही जा सकता है कि बदलाव सिर्फ कानून बनाने से ही नहीं आता। जरूत है मानसिकता में बदलाव की। मानसिकता में यह बदलाव कोई दो-चार का नहीं बल्कि समूचे समाज में आना जरूरी है। खास तौर से जो समाज का नेतृत्‍व करने वाले हैं।  
हम देख भी रहे हैं कि उच्‍च पदों पर आसीन लोग भी महिला सम्‍मान की उपेक्षा करते नजर आते हैं। राननीति में भी मुख्‍यमंत्री और मंत्री तक रहीं महिलाओं को लेकर अपमानजनक शब्‍दों का इस्‍तेमाल भी होता देखते हैं। दु:ख और तकलीफ तो तब और होती है जब सफेदपोश बने लोग ही बालगृहों में छोटी बच्चियों के शोषण के आरोपों से घिरते है। बलात्‍कार का आरोप विधायक पर लगता है तो पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में कतराती हैं। पीडि़ता के पिता को झूठे मुकदमे में गिरफ्तार किया जाता है और फिर जेल में ही उसकी मृत्‍यु हो जाती है।   

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