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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created May 24th 2019, 11:13 by DeendayalVishwakarma
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सुबह पांच बजे का अलार्म लगाकर सोई थी। कल बच्ची का पेपर है। कहीं उठने में देर न हो जाए। इसी चिंता में आंख लग गई। सुबह उठकर उसका लंच तैयार किया। उसे भी तैयार करके भेजा तब तक आठ बज चुके थे। पतिदेव को चाय और अखबार तो इसी बीच दे चुकी थी। अब वक्त था उनके नहाने के लिए पानी गर्म करने रखकर उनके कपड़े प्रेस करने का। जब तक ये तैयार होंगे मैं बेटी की किताबें और कपड़े समेटकर कमरे को थोड़ा व्यवस्थित कर लेती हूं। ऐसा सोच ही रही थी कि आवाज आई पूजा का घी और अगरबत्ती निकाल देना खत्म हो गया है।
दस बजे तक पतिदेव का नाश्ता तैयार किया, फिर टिफिन पैक करते-करते साढ़े दस बज गए। अब समय था खुद पर ध्यान देने का। ग्यारह बजे तक नहाकर। प्रभु वंदना करके कॉफी के साथ कुछ खाया। बच्ची के लौटने का समय हो रहा था। आज पालक पूरी और चटनी की फरमाइश थी। वो बनाकर प्यार मनुहार करके खिलाते हुए कब दो बजने को हुए पता ही नहीं चला। याद आया बाथरूम में कपड़े मुंह चिढ़ा रहे हैं। उन्हें धोते-धोते तीन बज गए। बेटी को पढ़ाना था। रात को जल्दी सुलाना पड़ता है तो दिन में ही पढ़ाई होमवर्क करवाना पड़ेगा।
शाम के पांच बजने को हो गए। ये आते ही होंगे। इनको चाय पिलाते हुए पूछती हूं कि रात को क्या खाना पसंद करेंगे। घर पर एक ही टाइम तो ठीक से खाना खा पाते हैं। ये सोचते हुए याद आया कि आज तो मैंने खाना खाया ही नहीं। जल्दबाजी में दो-तीन रोटियां खाकर इस काम से भी मुक्ति पाई।
रात का खाना बनाकर खिलाते-खिलाते साढ़े आठ बज चुके थे। नौ बजे इनके कुछ मिलने वाले आने वाले थे। उनकी आवभगत में दस बज गए। अब किचन और घर समेटना था। कल की तैयारी भी करनी थी। सब किया और घड़ी देखी तो साढ़े ग्यारह होने को थे। आज का अखबार समेट रही थी निगाहे एकदम से हैडिंग पर ठहर गई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज का अंक महिलाओं को समर्पित। पढ़ने बैठी, काफी कुछ लिखा था महिलाओं के बारे में। उत्साहवर्धक लगा, सोचा मुझे भी एक दिन अपने लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए। कागज-कलम लेकर अपने लिए समय निकालने बैठी तो देखा रात के साढ़े बारह बज चुके थे। मेरा समय और महिला दिवस दोनों समाप्त हो चुके थे।
दस बजे तक पतिदेव का नाश्ता तैयार किया, फिर टिफिन पैक करते-करते साढ़े दस बज गए। अब समय था खुद पर ध्यान देने का। ग्यारह बजे तक नहाकर। प्रभु वंदना करके कॉफी के साथ कुछ खाया। बच्ची के लौटने का समय हो रहा था। आज पालक पूरी और चटनी की फरमाइश थी। वो बनाकर प्यार मनुहार करके खिलाते हुए कब दो बजने को हुए पता ही नहीं चला। याद आया बाथरूम में कपड़े मुंह चिढ़ा रहे हैं। उन्हें धोते-धोते तीन बज गए। बेटी को पढ़ाना था। रात को जल्दी सुलाना पड़ता है तो दिन में ही पढ़ाई होमवर्क करवाना पड़ेगा।
शाम के पांच बजने को हो गए। ये आते ही होंगे। इनको चाय पिलाते हुए पूछती हूं कि रात को क्या खाना पसंद करेंगे। घर पर एक ही टाइम तो ठीक से खाना खा पाते हैं। ये सोचते हुए याद आया कि आज तो मैंने खाना खाया ही नहीं। जल्दबाजी में दो-तीन रोटियां खाकर इस काम से भी मुक्ति पाई।
रात का खाना बनाकर खिलाते-खिलाते साढ़े आठ बज चुके थे। नौ बजे इनके कुछ मिलने वाले आने वाले थे। उनकी आवभगत में दस बज गए। अब किचन और घर समेटना था। कल की तैयारी भी करनी थी। सब किया और घड़ी देखी तो साढ़े ग्यारह होने को थे। आज का अखबार समेट रही थी निगाहे एकदम से हैडिंग पर ठहर गई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज का अंक महिलाओं को समर्पित। पढ़ने बैठी, काफी कुछ लिखा था महिलाओं के बारे में। उत्साहवर्धक लगा, सोचा मुझे भी एक दिन अपने लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए। कागज-कलम लेकर अपने लिए समय निकालने बैठी तो देखा रात के साढ़े बारह बज चुके थे। मेरा समय और महिला दिवस दोनों समाप्त हो चुके थे।
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