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created May 24th 2019, 05:41 by SubodhKhare1340667
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देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में हुई तीन घटनाओं ने भारत की न्याय-व्यवस्था को सदमें में डाल दिया। यहां तक कि जाने-माने अधिवक्ता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी विगत दिनों एक पुस्तक-विमोचन समारोह में कहा कि अदालत को डारने का कुचक्र चल रहा है। अगर देश की सबसे बड़ी पंचायत भी यही बात कहे और देश का शासक वर्ग भी, तो फिर इलाज क्या है। क्या न्याय के लिए माफियाओं की दहलीज पर जाना होगा इन तीन घटनाओं ने पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार पर शोध कर रहे विद्वानों के लिए एक नया सवाल खड़ा कर दिया है। क्या विकासशील देशों में प्रचलन में आए कोल्युसिव करप्शन से छुटकारा पाना असंभव है।
इसकी शुरुआत 1970 में हुई जब विकास का पैसा बड़े परिणाम में सरकारी विभागों के माध्यम से भारत सहित विकासशील देशों में दिया जाने लगा। इसकी सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसका खत्म होना तब तक संभव नहीं जब तक समाज के अंदर वैयक्तिक नैतिक विवेक को झकझोरा न जाए और साथ ही भ्रष्टाचार निरोधक कानून और संस्थाओं को इतना मजबूत न बना दिया जाए कि कोई उनकी अवहेलना करने की हिमाकत न करे। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने दस साल पहले इस संकट को 'कोएर्सिव करप्शन से भी खतरनाक बताया और अपनी रिपोर्ट में सिंगापुर और हांगकांग का उदाहरण देते हुए सलाह दी कि मजबूत संस्थाएं विकसित की जाएं और दोष-मुक्ति का जिम्मा भी आरोपी पर डाला जाए।
इसकी शुरुआत 1970 में हुई जब विकास का पैसा बड़े परिणाम में सरकारी विभागों के माध्यम से भारत सहित विकासशील देशों में दिया जाने लगा। इसकी सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसका खत्म होना तब तक संभव नहीं जब तक समाज के अंदर वैयक्तिक नैतिक विवेक को झकझोरा न जाए और साथ ही भ्रष्टाचार निरोधक कानून और संस्थाओं को इतना मजबूत न बना दिया जाए कि कोई उनकी अवहेलना करने की हिमाकत न करे। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने दस साल पहले इस संकट को 'कोएर्सिव करप्शन से भी खतरनाक बताया और अपनी रिपोर्ट में सिंगापुर और हांगकांग का उदाहरण देते हुए सलाह दी कि मजबूत संस्थाएं विकसित की जाएं और दोष-मुक्ति का जिम्मा भी आरोपी पर डाला जाए।
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