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श्रीवास्तव टाइपिस्ट दिल्ली
created Mar 7th 2019, 14:40 by VedPrakash59
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				अयोध्या मामले का समाधान मध्यास्थता के जरिये करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही यर पता चलेगा कि आपसी बातचीत से इस विवाद का हल निकालने की दिशा में आगे बढ़ा जाता है या नहीं, लेकिन उचित यही होगा कि सदियों पुराने इस प्रकरण को आपस में मिल-बैठकर सुलझाने की कोशिश नए सिरे से की जाए। यह सही है कि इससे पहले आपसी बातचीत से अयोध्या मामले की कोशिश हो चुकी है और वे कामयाब नहीं रही, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस दिशा में बढ़ने से ही बचा जाए। किसी काम सें असफलता मिलते रहने के आधार पर इस नतीजो पर नहीं पहँचा जा सकता कि सफलता मिल ही नहीं सकती। यह भी याद रखना चाहिए कि पहले अयोध्या विवाद के समाधान की कोई राह इसलिए नहीं निकल सकी, क्योंकि तब कुछ राजनीतिक दलों का एक मात्र एजेंडा ही यही था कि यह विवाद अनसुलझा बना रहे ताकि उनके संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति होती रहे। उनके इस एजेंडे को पूरा करने में कुछ बुद्धिजीवी भी सहायक बने। आखिर यह किसी से छिपा नहीं कि प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के कार्यकाल में जब आपसी बातचीत से अयोध्या मामले का हल निकालने के गम्भीर प्रयास हो रहे थे तब किस तरह कुछ वामपंथी इतिहासकारों ने एक पक्ष को सुलह के रास्ते से हटने के लिए उकसाया।  
			
			
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