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'रंगकर्म'

created Nov 26th 2017, 01:03 by VARUN sharma


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'रंगकर्म' का नाम ज़बान पर आते ही एक वृहद् आकाश का स्मरण होने लगता है। रंगकर्मी यानी इस आकाश का एक नक्षत्र। परिपक्व रंगकर्मी की संपूर्ण संभावना यही होती है कि वह 'रंगाकाश' में सारस की भाँति उड़ान भरे, कल्पना के पंखों के सहारे हदों से गुज़रे और अनहदों के पार चला जाए।
सवाल उठता है कि वह कौन-सा विश्व-विद्यालय है जहाँ इन बुनियादी तत्वों का प्रशिक्षण दिया जाता है। साफ़ दिखलाई पड़ता है कि यह एक रास्ता है जिस पर चलने वाले कम ही अभिनेता, रंगकर्मी हुए हैं जो वहाँ तर निकल सके जहाँ तक रास्ता जाता है। बहुतेरे मार्ग की अड़चनों और त्रासदियों में उलझ कर आधे रास्ते तक ही रह गए। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज के 'रंगमंचीय-परिप्रेक्ष्यों' में वामपंथी चिंतनधारा प्रभावी है। वे कलाकार जिन्होंने अधिक समय रंगकर्म से संबंधित ज्ञान, ध्यान अर्जित करने में लगाया, उनके सामने 'आधुनिक रंग बोध' से जुड़ी प्रखरता का मुहाना भारतीय मूल के रंगाचार्यों से तो कम, पाश्चात्य नाटककारों के कार्यों, उनके अध्ययन, चिंतन, मनन, प्रयोगों एवं शोध आदि से अटा पड़ा है। बतोल्ट ब्रैंट, पीटर ब्रुक, रूस के नाटककार-निर्देशक, स्टैंनिसलॉस्की और उनके अनुयायी इवगेनी बख़्तानगोब के नाम सदा प्रमुखता से आते हैं। छत्तीसगढ़ मेले और लोक नाट्य के तत्वों का भरपूर प्रयोग करने में माहिर नाटककार हबीब तनवीर स्वयं को 'बेंटियन थॉट' से प्रभावित मानते हैं। स्टैनिस लॉस्की और उनके अनुयायी इवगेनी बख़्तानगोव का योगदान 'नाट्य स्कूलों' में पढ़ाने के लिए सर्वोत्तम 'टैक्स्ट' घोषित किया जा चुका है। नवागंतुक एक्टर के लिए बहुत कुछ मूल्यवान इन नाटककारों-निर्देशकों ने दिया है।

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