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COMTECH { CPCT - 26 } {By - Lalit}
created Sep 25th 2017, 17:34 by lalitsingh
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				चलचित्र इसी युग की देन हैं। पहले हम नाटकों को केवल सुना ही न करते थे वरन् देखा भी करते थे। अाज उन नाटकों ने वर्तमान सिनेमा का रूप ले लिया है। सिनेमा वर्तमान समय में मनोरंजन के मुख्य साधनों में से एक है। प्रत्येक देश में प्रतिदिन हजारों की संख्या में सभ्य, असभ्य, गरीब, अमीर, विद्यार्थी, व्यवसायी सभी सिनेमा देखते है। भरत में सिनेमा की उन्नति दिन-प्रति दिन हो रही है।  
हमारे अंग्रेजों का ध्यान हैं कि सिनेमा का प्रभाव युवक तथा युवतियों के चरित्र के ऊपर पड़ता है। इसी कारण वे हम लोगों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया करते हैं। सिनेमा के दृश्य यद्यपि ह्रदयस्पर्शी होते हैं फिर भी इसके माने यह नहीं कि चरित्रों के बिगडने का दोष सिनेमा पर ही लगाया जाय। प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि तथा दृष्टिकोण के अनुसार चित्रों का अर्थ निकालता है तथा शिक्षा ग्रहण करता है। पश्चिमी देशों में चित्रों की सहायता शिक्षा प्रसार में होती है। यदि इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस अदि के इतिहास का अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होगा कि चलचित्रों ने शिक्षा-प्रसार तथा राष्ट्र-निर्माण करने में कितनी सहायता पहुँचाई है। आज भी इन देशों में कृषि शिक्षा अादि चलचित्रों द्वारा ही दी जाती है।
भारत, संसार में अमेरिका के बाद दूसरा देश है जो सबसे अधिक चलचित्रों का निर्माण करता है। भारत केवल चलचित्रों का निर्माता है न कि उच्चकोटि के चित्रों का । भारतीय निर्माताओं का उद्देश्य जनता से पैसा ऐंठना रहता है। शिक्षाप्रद चित्रों का निर्माण करना वे या तो जानते ही नहीं या उन्हें आशंका इस बात की रहती है कि उच्चकोटि के शिक्षाप्रद और सामाजिक चित्र बनायेंगे तो उतनी आय न होगी जितनी घृणित तथा निम्नकोटि के चित्रों से होती है। हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस ओर पूर्णतया उदासीन है।
			
			
	        हमारे अंग्रेजों का ध्यान हैं कि सिनेमा का प्रभाव युवक तथा युवतियों के चरित्र के ऊपर पड़ता है। इसी कारण वे हम लोगों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया करते हैं। सिनेमा के दृश्य यद्यपि ह्रदयस्पर्शी होते हैं फिर भी इसके माने यह नहीं कि चरित्रों के बिगडने का दोष सिनेमा पर ही लगाया जाय। प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि तथा दृष्टिकोण के अनुसार चित्रों का अर्थ निकालता है तथा शिक्षा ग्रहण करता है। पश्चिमी देशों में चित्रों की सहायता शिक्षा प्रसार में होती है। यदि इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस अदि के इतिहास का अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होगा कि चलचित्रों ने शिक्षा-प्रसार तथा राष्ट्र-निर्माण करने में कितनी सहायता पहुँचाई है। आज भी इन देशों में कृषि शिक्षा अादि चलचित्रों द्वारा ही दी जाती है।
भारत, संसार में अमेरिका के बाद दूसरा देश है जो सबसे अधिक चलचित्रों का निर्माण करता है। भारत केवल चलचित्रों का निर्माता है न कि उच्चकोटि के चित्रों का । भारतीय निर्माताओं का उद्देश्य जनता से पैसा ऐंठना रहता है। शिक्षाप्रद चित्रों का निर्माण करना वे या तो जानते ही नहीं या उन्हें आशंका इस बात की रहती है कि उच्चकोटि के शिक्षाप्रद और सामाजिक चित्र बनायेंगे तो उतनी आय न होगी जितनी घृणित तथा निम्नकोटि के चित्रों से होती है। हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस ओर पूर्णतया उदासीन है।
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