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बंसोड कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंंस्‍टीट्यूट छिंंदवाड़ा म0प्र0 (ADMISSION OPEN - DCA, PGDCA, CPCT & TALLY) MOB. NO. 8982805777

created Feb 6th 2023, 06:20 by Vikram Thakre


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महोदय, माननीय न्‍यायालय के समक्ष मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि अभियोजन साक्षी रामेश्‍वर गुप्‍ता का यह अभिकथन है कि वह अभियुक्‍तगण को बहुत अच्‍छी तरह से जानता है और उन्‍होंने अपने कथन में यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया है अभियोगी का कथन है कि वह अभियुक्‍तगण को अच्‍छी तरह से जानता है क्‍योंकि अभियुक्‍त्‍गण अभियोगी के आसपास ही रहते हैं उन्‍होंने बताया है कि घटना की दिनांक से लगभग चार-पांच वर्ष एक घटना हुई थी जिसमें अभियुक्‍तगण के हाथ में गंभीर चोट आई थी इस बात पर अभियुक्‍तगण ने फरियादी रमेश के खिलाफ संबंधित थाने में रिपोर्ट दर्ज की थी उसके बाद कई सालों तक इस मामले का निबटारा नहीं हुआ और इस मामले में अभियोजन का कहना था कि हम दोनों आपस में राजीनामा कर लें लेकिन अभियुक्‍त्‍गण ने राजीनामा करने से इनकार कर दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि अभियुक्‍तगण को बहुत बुरा लगा और उन्‍होंने इसका बदला लेने के लिए एक योजना बनाई। इसके अतिरिक्‍त अन्‍य किसी प्रत्‍यक्ष साक्षी के अभिकथन अभिलेख पर नहीं हैं तथा अभियोजन के साक्ष्‍य के कई स्‍तर हो चुके हैं और माननीय न्‍यायालय द्वारा साक्ष्‍य प्रस्‍तुति के कई अवसर दिए जा चुके हैं तथा इस संबंध में साक्षी की उपस्थिति हेतु थाना प्रभारी को एक पत्र अलग से जारी किया गया है जिसका मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन मामले में अभी तक कोई उचित कार्यवाही नहीं की गई है।  
मामले में अभियोगी का यह अभिकथन है कि वे किसी काम से अपने घर से बाजार की ओर दिनांक 05 जनवरी, 2009 को जा रहे थे तभी रास्‍ते में उनके विपक्षी लोग मिल गए तो उन्‍होंने मौके का फायदा उठाकर उन पर घातक हथियारों से हमला कर दिया जिसमें फरियादी को गंभीर रूप से चोटें कारित हुईं। तब इसकी सूचना फरियादी ने अपने नजदीक थाने में जाकर दी वहां प्रधान आरक्षक ने तुरंत रिपोर्ट दर्ज की और मामले को अपराध क्रमांक 06/09 के अंतर्गत धारा 353 एवं 506 भारतीय दंड संहिता के तहत प्रथम सूचना प्रतिवेदन तैयार किया गया और विवेचना के दौरान उसने अभियोगी के बताए अनुसार उसके कथन लेखबद्ध किए थे तथा घटनास्‍थल पर पहुंच कर अभियोगी के कहने पर मौका नक्‍शा भी बनाया था और विवेचना के दौरान साक्षीगण के कथन भी लेखबद्ध किए थे जिसमें अभियुक्‍त के विरुद्ध अभियोजन साक्षी को कोई जानकारी प्राप्‍त नहीं थी।  
 

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