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created Feb 6th 2023, 03:13 by Success With You


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इस प्रकरण में परिवाद प्रदर्श पी 2 न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया था, उसी परिवाद पर से प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध की गयी है। प्रकरण में ऐसी कोई साक्ष्‍य नहीं आयी है, जिसमें साक्षियों द्वारा यह कहा गया हो कि वे राशि निकालने के लिए अभियुक्‍त मनोज के बैंक में गये थे और उसने उन्‍हें जमा राशि प्रदाय नहीं की। मात्र यह बात आयी है कि उसका ऑफिस बंद है, इसलिए उन्‍होंने सोचा कि वह उनके रूपये लेकर भाग गया है अर्थात् ऐसी साक्ष्‍य से अभियुक्‍तगण के विरूद्ध धारा 406 भारतीय दण्‍ड संहिता का आरोप सिद्ध नहीं होता है। प्रकरण में ऐसी भी कोई साक्ष्‍य नहीं आयी है, जिसमें साक्षियों ने यह कथन किये हों कि अभियुक्‍तगण द्वारा कोई प्रतिबंधित ईनामी ड्राफ्ट एवं पुरस्‍कार संबंधी धन परिचालन का अवैध रूप से कार्य किया गया हो। प्रकरण में टोकन प्रदर्शित कराये गये हैं, जिन्‍हें मार्क दिया गया है एवं उस मार्क पर प्रदर्श पी 28 के अनुसार आरोपी मनोज के हस्‍ताक्षर हैं, किन्‍तु इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि आरोपी मनोज ने रूपये प्राप्‍त कर उन्‍हें इंद्राज किये हैं, क्‍योंकि उसमें मात्र एक स्‍थान पर आरोपी मनोज के हस्‍ताक्षर हैं। अंकेक्षण अधिकारी ने स्‍वयं प्रतिपरीक्षण की कंडिका 9 में कथन किये हैं उसे आरोपी मनोज की संस्‍था का असल रिकॉर्ड देखने को नहीं मिला था, इसलिए वह निश्चित राय नहीं दे पाया था एवं यह कथन किया कि मनोज यादव दोषी प्रतीत होता है, यदि उसे साक्ष्‍य मिल जाती तो वह स्‍पष्‍ट दोषी या निर्दोष होने का उल्‍लेख करता ना कि प्रतीत होने का। साक्षी के उपरोक्‍त स्‍वीकारोक्ति कथन से भी यह स्‍पष्‍ट है कि अंकेक्षण अधिकारी को आरोपी द्वारा कोई तथ्‍य अथवा दस्‍तावेज अभियोजन समर्थन लायक नहीं मिले थे, इसीलिए उसने इस आशय की राय अपने प्रतिपरीक्षण में दी है। ऐसी स्थिति में आपराधिक विधि का सिद्धांत भी यह है कि शंका कितनी भी प्रबल क्‍यों हो वह प्रमाण का स्‍थान नहीं ले सकती है। इस प्रकार अभियोजन यह भी सिद्ध नहीं कर पाया है कि अभियुक्‍तगण ने संस्‍था का पंजीयन छल करने के आशय से ही कराया था। प्रकरण में अभियुक्‍त मनोज फरार रहा है।    

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