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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 1st 2023, 04:48 by lovelesh shrivatri
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अपीलकर्ता एवं अन्य तीन व्यक्तियों के विरुद्ध यह अभियोग लगाया गया कि जून 1950 से नवंबर 1950 तक इन चार व्यक्तियों ने मुम्बई में एक षड्यंत्र किया था तथा इस षड्यंत्र के अंतर्गत आयात उप-नियंत्रक से सोमराज नामक कंपनी के नाम तीन या चार अनुज्ञप्तियां कुछ माल विदेशों से मंगाने हेतु इसे धोखा देकर प्राप्त किया। इस निर्णय के विरुद्ध मुम्बई राज्य द्वारा उच्च न्यायालय में अपील की गई। उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता के अतिरिक्त अन्य तीनों व्यक्तियों की दोषमुक्ति के निर्णय को यथावत रखा एवं अपीलकर्ता को उक्त समस्त कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए दंडित किया। अपीलकर्ता को दंडसंहिता की धारा 120ख के अंतर्गत 18 माह के कठोर करावास का दंडादेश प्रदान किया गया।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विनिश्चिय के मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या षड्यंत्र के अभियोग के लिए अभियुक्तों में से केवल एक अभियुक्त को ही दोषी ठहराते हुए दंडित किया जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्तिगण ने दंड संहिता की धारा 120ख के अंतर्गत वर्णित षड्यंत्र के तत्वों की विवेचना करते हुए यह मत अभिव्यक्त किया कि यह कई बार विनिश्चित किया जा चुका है कि षड्यंत्र के अपराध के लिए उस समय जबकि अन्य सभी अभियुक्त निर्दोष घोषित किए जा चुके हों, केवल शेष एक अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि षड्यंत्र के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्तों के बीच दुर्भावना आपराधिक करार वर्तमान हो। इस प्रकार केवल एक ही अभियुक्त को दोषी ठहराये जाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अभियुक्त के बीच ऐसा कोई आपराधिक करार नहीं था अत: उसे षड्यंत्र के अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है।
प्रस्तुत प्रकरण में भी ठीक यही बात थी। अपीलकर्ता को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ संहिता की धारा 120ख के अंतर्गत अभियोग के लिए अभियोजित किया गया। लेकिन अन्य तीन व्यक्तियों को निर्दोष ठहराते हुए दोषमुक्त घोषित कर दिया गया एवं अपीलकर्ता को एक मात्र दोषी पाते हुए दंडित किया गया, जबकि धारा 120ख के अंतर्गत ऐसा नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत प्रकरण में सत्र न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के निर्णयों से यह स्पष्ट था कि अवैध समूह, जिसके लिए अपीलकर्ता सदस्य थे, के किसी भी सदस्य का मृतकों की मृत्यु कारित कर देने का आशय नहीं था, न अवैध समूह के इस उद्देश्य का मृतकों को डराया धमकाया जाए, उनकी मृत्यु कारित कर देना ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिला था।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विनिश्चिय के मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या षड्यंत्र के अभियोग के लिए अभियुक्तों में से केवल एक अभियुक्त को ही दोषी ठहराते हुए दंडित किया जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्तिगण ने दंड संहिता की धारा 120ख के अंतर्गत वर्णित षड्यंत्र के तत्वों की विवेचना करते हुए यह मत अभिव्यक्त किया कि यह कई बार विनिश्चित किया जा चुका है कि षड्यंत्र के अपराध के लिए उस समय जबकि अन्य सभी अभियुक्त निर्दोष घोषित किए जा चुके हों, केवल शेष एक अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि षड्यंत्र के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्तों के बीच दुर्भावना आपराधिक करार वर्तमान हो। इस प्रकार केवल एक ही अभियुक्त को दोषी ठहराये जाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अभियुक्त के बीच ऐसा कोई आपराधिक करार नहीं था अत: उसे षड्यंत्र के अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है।
प्रस्तुत प्रकरण में भी ठीक यही बात थी। अपीलकर्ता को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ संहिता की धारा 120ख के अंतर्गत अभियोग के लिए अभियोजित किया गया। लेकिन अन्य तीन व्यक्तियों को निर्दोष ठहराते हुए दोषमुक्त घोषित कर दिया गया एवं अपीलकर्ता को एक मात्र दोषी पाते हुए दंडित किया गया, जबकि धारा 120ख के अंतर्गत ऐसा नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत प्रकरण में सत्र न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के निर्णयों से यह स्पष्ट था कि अवैध समूह, जिसके लिए अपीलकर्ता सदस्य थे, के किसी भी सदस्य का मृतकों की मृत्यु कारित कर देने का आशय नहीं था, न अवैध समूह के इस उद्देश्य का मृतकों को डराया धमकाया जाए, उनकी मृत्यु कारित कर देना ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिला था।
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