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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 25th 2023, 06:08 by lucky shrivatri
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जीवन के दो स्तर होते हैं- व्यक्तिगत और संस्थागत। इसी प्रकार देश के भी दो स्तर होते हैं- व्यक्तिगत- जहां शासक ही देश का पर्याय है तथा संस्थागत-जैसे भारत में लोकतंत्र का स्वरूप। राजाओं का राज था, वंशानुगत शासन की परम्परा में राजा की इच्छा ही देश का भविष्य बनती रही है। आज भी चीन और रूस इसी श्रेणी में आते हैं। वहां सत्ताधीशों ने उम्रभर कुर्सी पर बने रहने की घोषणा कर रखी है। दोनों ही देशों में जो हो रहा है अथवा सत्ताधीशों के द्वारा जो किया जा रहा हैं, उसे देखकर सम्पूर्ण विश्व आतंकित है। वहां व्यक्ति ही देशवासियों के भविष्य का निर्णायक हैं। करोड़ों लोगों की भविष्य एक व्यक्ति की मुठ्ठी में है। दूसरी ओर अमरीका का संस्थागत ढ़ांचा है, जहां व्यक्ति सदा ही कानून से छोटा रहा है। अमरीका के न्याय विभाग ने वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन के घर पर छापा मारा और अहम दस्तावेज बरामद किए। एकाएक विश्वास ही नहीं होता कि दुनिया के शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति देश के घर पर उनकी ही संस्था छापा मार दे। छापे तब मारे गए जब बाइडन परिवार घर पर नहीं था। बाइडन के उपराष्ट्रपति काल के दस्तावेज एवं सीनेट सदस्यता काल के दस्तावेज भी विभाग ने अपने कब्जे में कर लिए। कुछ दिन पहले भी राष्ट्रपति के घर पर छापा पड़ा था। पिछले वर्ष भी उनके यहां छापा पड़ चुका हैं। इसी प्रकार पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के खिलाफ भी कितनी ही जांचें एवं कानूनी कार्रवाई चल रहीं हैं । यह कोई हौंसले वाली सरकार ही कर सकती हैं। सरकार तो नहीं करेगीं, हां-स्वतंत्र संस्थाएं कर सकती हैं। हमारे यहां तो पार्षद ही मोहल्ले का मुख्यमंत्री होता है। उसे सरकार की चिन्ता, न संस्था की, न किसी कानून की। उसे पता है साल में कितना कमाना हैं। तब विधायक, सांसद से लेकर मंत्री तक की क्या स्थिति होगी। एक चौथाई सुर, तीन चौथाई असुर, जो जनता को लूटने के लिए ही चुनाव लड़ते हैं। हमारे यहांं भी लोकतंत्र है। जनप्रतिनिधियों का चुनाव भी होता हैं। संसद में भी पार्टी के प्रतिनिधि होते हैं। और विधानसभा में भी। अत: कोई भी देश या प्रदेश की भाषा नहीं बोलता। केवल दलगत भाषा और व्यवहार ही दिखाई देता है। हमारे यहां चीन और रूस की तरह तानाशाही तो नहीं है। न ही अमरीका की तरह संस्थाएं स्वतंत्र ही हैं। जो बहुमत की सरकार के साथ-वह फायदे में जो सरकार के विरूद्ध, वो तो मारा गया। हर जगह एक सा स्वरूप हैं। हमारे लोकतंत्र में एक बड़ी बाधा है अशिक्षा। अल्प शिक्षित अपराधियों का बोलबाला होने के कारण अफसर ही सरकार चलाता हैं-ठेकेदार की तरह। ठेके की कीमत चुकाता रहता हैं। अमृत महोत्सव तो 'अशिक्षा के लोकतंत्र का ही हुआ हैं। जब शिक्षित उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की अनिवार्यता हो जाएगी, तब जाकर भ्रष्टाचार के कुछ कम होने की आशा हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी हैं। कि राजनेता जमकर भ्रष्टाचार करते हैं, और बाद में कष्टों से बचने के लिए शासक दल में शामिल हो जाते हैं। कमाई को बांट खाते हैं। लोकतंत्र का चक्र चलता हैं। ध्वज लहराता रहता है। कुछ उदाहरण तो लोकतंत्र जड़ें हिलाने वाले रहे हैं।
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