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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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प्रस्तुत प्रकरण की परिस्थितियों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अपीलकर्त्ता का उद्देश्य अपनी पत्नी की हत्या करने का नहीं था और न ही उसके द्वारा पहुंचाई गई चोट ऐसी थी कि जो प्रकृति के सामान्य क्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो। परिणामस्वरूप अपीलकर्ता की अपील स्वीकार की गई और उसकी दोषसिद्धि को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 से 299 में परिवर्तित किया गया तथा उसे सात वर्ष के कारावास से दण्डित किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 से सम्बन्धित है। इसमें धारा 300 में वर्णित गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन के अपवाद की व्याख्या की गई है। इस प्रकरण में न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि वाद के तथ्यों को देखते हुए क्या अभियुक्त को धारा 300 के अपवाद क्रमांक 1 में वर्णित गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन का लाभ दिया जा सकता है या नहीं।
प्रस्तुत प्रकरण में विधि का यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन का परीक्षण यह है कि क्या अभियुक्त के समान स्थिति वाला कोई व्यक्ति उन्हीं परिस्थितियों में जिनमें अभियुक्त था, अपना मानसिक सन्तुलन खो देता और क्या अभियुक्त को अपना मानसिक सन्तुलन ठीक करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला था।
प्रस्तुत प्रकरण भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 से सम्बन्धित है। इसमें धारा 300 में वर्णित गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन के अपवाद की व्याख्या की गई है। इस प्रकरण में न्यायालय के समक्ष मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि वाद के तथ्यों को देखते हुए क्या अभियुक्त को धारा 300 के अपवाद क्रमांक 1 में वर्णित गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन का लाभ दिया जा सकता है या नहीं।
प्रस्तुत प्रकरण में विधि का यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन का परीक्षण यह है कि क्या अभियुक्त के समान स्थिति वाला कोई व्यक्ति उन्हीं परिस्थितियों में जिनमें अभियुक्त था, अपना मानसिक सन्तुलन खो देता और क्या अभियुक्त को अपना मानसिक सन्तुलन ठीक करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला था।
